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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 55

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 55/ मन्त्र 1
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - विश्वे देवाः छन्दः - जगती सूक्तम् - सौम्नस्य सूक्त

    ये पन्था॑नो ब॒हवो॑ देव॒याना॑ अन्त॒रा द्यावा॑पृथि॒वी सं॒चर॑न्ति। तेषा॒मज्या॑निं यत॒मो वहा॑ति॒ तस्मै॑ मा देवाः॒ परि॑ धत्ते॒ह सर्वे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । पन्था॑न: । ब॒हव॑: । दे॒व॒ऽयाना॑: । अ॒न्त॒रा । द्यावा॑पृथि॒वी इति॑ । स॒म्ऽचर॑न्ति । तेषा॑म् । अज्या॑निम् । य॒त॒म: । वहा॑ति । तस्मै॑ । मा॒ । दे॒वा॒: । परि॑ । ध॒त्त॒ । इ॒ह । सर्वे॑ ॥५५.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये पन्थानो बहवो देवयाना अन्तरा द्यावापृथिवी संचरन्ति। तेषामज्यानिं यतमो वहाति तस्मै मा देवाः परि धत्तेह सर्वे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । पन्थान: । बहव: । देवऽयाना: । अन्तरा । द्यावापृथिवी इति । सम्ऽचरन्ति । तेषाम् । अज्यानिम् । यतम: । वहाति । तस्मै । मा । देवा: । परि । धत्त । इह । सर्वे ॥५५.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 55; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    (ये) जो (देवयानाः) विद्वानों के जाने योग्य (बहवः) बहुत से (पन्थानः) ज्ञानमार्ग (द्यावापृथिवी) द्यौ और पृथिवी, ज्ञान और कर्म, परलोक और इहलोक, ब्रह्म और प्रकृति और राजा प्रजा के (अन्तरा) बीच में (सं चरन्ति) चल रहे हैं (तेषां) उनमें से (यतमः) जो भी (अज्यानिम्) हानिरहित समृद्धि, आत्मरक्षा को (वहाति) प्राप्त कराता है (तस्मै) उस मार्ग के लिये (सर्वे देवाः) सब विद्वान् लोग (मा) मुझे (इह) संसार में (परि धत्त) पुष्ट करें, बल दें, उस उत्तम मार्ग में चलने को कटिबद्ध करें। ब्रह्मज्ञान का मार्ग सबसे उत्तम है। “इह चेदवेदीदथ सत्यमस्ति न चेदवेदीन्महती विनष्टिः।” इसी शरीर में रहकर आत्मज्ञान कर लिया तो ठीक, नहीं तो बड़ा भारी विनाश हो जाता है। कठ उप०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। १ विश्वेदेवा देवताः, २, ३ रुद्रः। १, ३ जगत्यौ, २ त्रिष्टुप्॥

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