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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 7

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 7/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वा देवता - सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री सूक्तम् - असुरक्षयण सूक्त

    येन॑ सो॒मादि॑तिः प॒था मि॒त्रा वा॒ यन्त्य॒द्रुहः॑। तेना॒ नोऽव॒सा ग॑हि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    येन॑ । सो॒म॒ । अदि॑ति: । प॒था । मि॒त्रा: । वा॒ । यन्ति॑ । अ॒द्रुह॑: । तेन॑ । न॒: । अव॑सा । आ । ग॒हि॒ ॥७.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येन सोमादितिः पथा मित्रा वा यन्त्यद्रुहः। तेना नोऽवसा गहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    येन । सोम । अदिति: । पथा । मित्रा: । वा । यन्ति । अद्रुह: । तेन । न: । अवसा । आ । गहि ॥७.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 7; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    हे (सोम) राजन् ! (येन पथा) जिस मार्ग से या उपाय से (अदितिः) अखण्डित शासक राजा और (मित्राः वा) उसके प्रजाधिकारी जो प्रजा को परस्पर के मरने मारने से रक्षा करने हारे हैं वे (अद्रुहः) बिना परस्पर द्रोह किये (यन्ति) गमन करते हैं (तेन) उस (अवसा) प्रजारक्षणकारी बल से (नः) हमें (आ गहि) प्राप्त हो और हमें अपना।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। सोमो देवता, विश्वेदेवा देवताः। १-३ गायत्र्यः। ३ निचृत्। तृचं सूक्तम्॥

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