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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 79/ मन्त्र 1
सूक्त - अथर्वा
देवता - संस्फानम्
छन्दः - गायत्री
सूक्तम् - ऊर्जा प्राप्ति सूक्त
अ॒यं नो॒ नभ॑स॒स्पतिः॑ सं॒स्फानो॑ अ॒भि र॑क्षतु। अस॑मातिं गृ॒हेषु॑ नः ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒यम् । न॒: । नभ॑स: । पति॑: । स॒म्ऽस्फान॑: । अ॒भि । र॒क्ष॒तु॒ । अस॑मातिम् । गृ॒हेषु॑ । न॒: ॥७९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
अयं नो नभसस्पतिः संस्फानो अभि रक्षतु। असमातिं गृहेषु नः ॥
स्वर रहित पद पाठअयम् । न: । नभस: । पति: । सम्ऽस्फान: । अभि । रक्षतु । असमातिम् । गृहेषु । न: ॥७९.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 79; मन्त्र » 1
विषय - प्रचुर अन्न की प्रार्थना।
भावार्थ -
(अयम्) यह ही प्रत्यक्ष सूर्य, मेघ या वायु (सं-स्फानः) अन्न को बढ़ाने वाला (नभसः) अन्तरिक्ष या वर्ष के प्रथम मास श्रावण का पति, पालक है। वह (नः) हमारी (अभि रक्षतु) सब प्रकार से रक्षा करे। और (नः) हमारे (गृहेषु) घरों में (असमातिम्) इतनी अन्न आदि की समृद्धि प्रदान करे जो समा भी न सके।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। संस्फानो देयता। १-२ गायत्र्यौ, ३ त्रिपदा प्राजापत्या जगती। तृचं सूक्तम्॥
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