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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 91

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 91/ मन्त्र 3
    सूक्त - भृग्वङ्गिरा देवता - आपः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - यक्षमनाशन सूक्त

    आप॒ इद्वा उ॑ भेष॒जीरापो॑ अमीव॒चात॑नीः। आपो॒ विश्व॑स्य भेष॒जीस्तास्ते॑ कृण्वन्तु भेष॒जम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आप॑: । इत् । वै । ऊं॒ इति॑। भे॒ष॒जी: । आप॑: । अ॒मी॒व॒ऽचात॑नी: । आप॑: । विश्व॑स्य । भे॒ष॒जी: । ता: । ते॒ । कृ॒ण्व॒न्तु॒ । भे॒ष॒जम् ॥९१.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आप इद्वा उ भेषजीरापो अमीवचातनीः। आपो विश्वस्य भेषजीस्तास्ते कृण्वन्तु भेषजम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आप: । इत् । वै । ऊं इति। भेषजी: । आप: । अमीवऽचातनी: । आप: । विश्वस्य । भेषजी: । ता: । ते । कृण्वन्तु । भेषजम् ॥९१.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 91; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    अथवा (आपः इत् या) जल ही (भेषजीः) सब रोगों की चिकित्सा है, क्योंकि (आपः) जल ही (अमीव-चातनीः) रोगों का नाशक है। (आपः) जल ही (विश्वस्य) समस्त प्राणियों के (भेषजीः) रोग को दूर करता है, वही (भेषजम्) रोग को दूर (कृण्वन्तु) करें। इस सूक्त में तीन प्रकार से मल और पापों का नाश करने का उपदेश किया है (१) योगाभ्यास से चित्त के पापों को दूर करे। (२) क्रिया-योग से कायिक दोषों को दूर करे और (३) जल स्नान से शरीर के बाह्य मलों को दूर करे।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भृग्वङ्गिराः ऋषिः। बहवो देवताः। अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥

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