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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 39 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 39/ मन्त्र 1
    ऋषिः - कण्वो घौरः देवता - मरूतः छन्दः - पथ्यावृहती स्वरः - मध्यमः

    प्र यदि॒त्था प॑रा॒वतः॑ शो॒चिर्न मान॒मस्य॑थ । कस्य॒ क्रत्वा॑ मरुतः॒ कस्य॒ वर्प॑सा॒ कं या॑थ॒ कं ह॑ धूतयः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । यत् । इ॒त्था । प॒रा॒ऽवतः॑ । शो॒चिः । न । मान॑म् । अस्य॑थ । कस्य॑ । क्रत्वा॑ । मरुतः॑ । कस्य॑ । वर्प॑सा । कम् । या॒थ॒ । कम् । ह॒ । धू॒त॒यः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र यदित्था परावतः शोचिर्न मानमस्यथ । कस्य क्रत्वा मरुतः कस्य वर्पसा कं याथ कं ह धूतयः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । यत् । इत्था । परावतः । शोचिः । न । मानम् । अस्यथ । कस्य । क्रत्वा । मरुतः । कस्य । वर्पसा । कम् । याथ । कम् । ह । धूतयः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 39; मन्त्र » 1
    अष्टक » 1; अध्याय » 3; वर्ग » 18; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    हे (मरुतः) विद्वानो! एवं वायु के समान तीव्र वेग वाले बलवान् वीर सैनिको! एवं व्यापारकुशल पुरुषो! (शोचिनः) जिस प्रकार सूर्य दूर देश से अपने तेज को फेंकता है उसी प्रकार (परावतः) दूर दूर के देश से भी आकर तुम (यत् इत्था) जो इस प्रकार (मानम्) प्रजा और शत्रुजन को स्तब्ध या चकित कर देने वाले बल या शस्त्रास्त्रसमूह को (अस्यथ) फेंकते हो तो बतलाओ वह (कस्य) किसके क्रिया-सामर्थ्य से और (कस्य वर्पसा) किसके भौतिक बल से फेंकते हो। और तुम लोग जो वायु के समान तीव्र वेग से जा रहे हो तो (कं याथ) किसको लक्ष्य करके जाते हो। और हे (धूतयः) वृक्षों को वायु के समान शत्रुओं को कंपाने वाले आप लोग (कं ह) भला किसको लक्ष्य करके जाते हैं। परमेश्वर और आत्मा के पक्ष में—(मरुतः) ये तीव्र वेग से जानेवाले वायुगण अधिक परिमाण वाले जलादि को और पृथिवी आदि लोक दूर से तेज को किसके ज्ञान, बल और क्रियाशक्ति से फेंकते हैं। और कहाँ चले जा रहे हैं। इनका लक्ष्य क्या है। उत्तर—(कस्य क्रत्वा, कस्य वर्पसा) उसके सबके कर्त्ता प्रजापति परमेश्वर के ज्ञान और क्रिया सामर्थ्य तथा बल से ही प्रेरित होकर ये सब तेज, जल आदि बरसाते और गति करते हैं उसी को लक्ष्य कर जा रहे हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - कण्वो घौर ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्दः- १, ५, ९ पथ्याबृहती ॥ २, ७ उपरिष्टाद्विराड् बृहती। २, ८, १० विराट् सतः पंक्तिः । ४, ६ निचृत्सतः पंक्तिः । ३ अनुष्टुप् । दशर्चं सूक्तम् ।

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