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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 59 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 59/ मन्त्र 7
    ऋषिः - नोधा गौतमः देवता - अग्निर्वैश्वानरः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    वै॒श्वा॒न॒रो म॑हि॒म्ना वि॒श्वकृ॑ष्टिर्भ॒रद्वा॑जेषु यज॒तो वि॒भावा॑। शा॒त॒व॒ने॒ये श॒तिनी॑भिर॒ग्निः पु॑रुणी॒थे ज॑रते सू॒नृता॑वान् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वै॒श्वा॒न॒रः । म॒हि॒म्ना । वि॒श्वऽकृ॑ष्टिः । भ॒रत्ऽवा॑जेषु । य॒ज॒तः । वि॒भाऽवा॑ । शा॒त॒ऽव॒ने॒ये । श॒तिनी॑भिः । अ॒ग्निः । पु॒रु॒ऽनी॒थे । ज॒र॒ते॒ । सू॒नृता॑ऽवान् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वैश्वानरो महिम्ना विश्वकृष्टिर्भरद्वाजेषु यजतो विभावा। शातवनेये शतिनीभिरग्निः पुरुणीथे जरते सूनृतावान् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वैश्वानरः। महिम्ना। विश्वऽकृष्टिः। भरत्ऽवाजेषु। यजतः। विभाऽवा। शातऽवनेये। शतिनीभिः। अग्निः। पुरुऽनीथे। जरते। सूनृताऽवान् ॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 59; मन्त्र » 7
    अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 25; मन्त्र » 7

    भावार्थ -
    ( १ ) परमेश्वर या राजा अपने ( महिम्ना ) महान् सामर्थ्य से (वैश्वानरः) सब मनुष्यों का हितकारी, सब का नेता, संचालक और (विश्वकृष्टिः) समस्त मनुष्यादि प्रजाओं का स्वामी ( भरद्वाजेषु ) भरणपोषण करने वाले और ज्ञानोपदेश करनेवाले, सम्पन्न और विद्वान् पुरुषों में भी ( यजतः ) सबका उपास्य, सबको दान देने वाला और (विभावा) विशेष कान्ति, दीप्ति से युक्त, तेजस्वी है । वह (शतिनीभिः) सैकड़ों उत्तम कार्योंवाली शक्तियों सहित (अग्निः) ज्ञानवान् अग्रणी ( सूनृतावान्) शुभ सत्यवाणी, तथा ज्ञान और अन्न सम्पदा से सम्पन्न होकर ( पुरुनीथे ) बहुतसे सहायकों से चलाये जाने योग्य (शातवनेये) सैकड़ों ऐश्वर्यों के स्वामियों से पूर्ण राष्ट्र और जगत् में (जरते) वही स्तुति किया जाता है । राजा के पक्ष में—समस्त प्रजाओं का स्वामी ( पुरुनीथे ) बहुतों से संचालन योग्य, (शातवनेये) सैकड़ों सम्भोग्य ऐश्वर्यों के स्वामियों से युक्त अथवा सैकड़ों वनि अर्थात् भूति, वेतनादि से बद्ध भृत्यों से संचालित राज्य में ( शतिनीभिः ) सैकड़ों पुरुषों वाली सेनाओं से युक्त (अग्निः) अग्रणी सेनापति भी (सूनृतावान्) सत्यवाणी और उत्तम आज्ञावाला होकर (जरते) स्तुति के योग्य होता है । अथवा—(अग्निः) विद्वान् पुरुष (शातवनेये) शतऋतु के भोक्ता, शतवर्ष आयुवाले, चिरजीवी जनसमाज में भी ( सूनृतावान् जरते) उत्तम वेदवाणी से युक्त विद्वान् होकर उपदेश करता है वह और स्तुति योग्य होता है। इति पञ्चविंशो वर्गः ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - १-७ नोधा गौतम ऋषिः ॥ अग्निर्वैश्वानरो देवता ॥ छन्दः– १ निचृत् त्रिष्टुप् । २, ४ विराट् त्रिष्टुप् । ५-७ त्रिष्टुप् । ३ पंक्तिः ।

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