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ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 179/ मन्त्र 1
उत्ति॑ष्ठ॒ताव॑ पश्य॒तेन्द्र॑स्य भा॒गमृ॒त्विय॑म् । यदि॑ श्रा॒तो जु॒होत॑न॒ यद्यश्रा॑तो मम॒त्तन॑ ॥
स्वर सहित पद पाठउत् । ति॒ष्ठ॒त॒ । अव॑ । प॒श्य॒त॒ । इन्द्र॑स्य । भा॒गम् । ऋ॒त्विय॑म् । यदि॑ । श्रा॒तः । जु॒होत॑न । यदि॑ । अश्रा॑तः । म॒म॒त्तन॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उत्तिष्ठताव पश्यतेन्द्रस्य भागमृत्वियम् । यदि श्रातो जुहोतन यद्यश्रातो ममत्तन ॥
स्वर रहित पद पाठउत् । तिष्ठत । अव । पश्यत । इन्द्रस्य । भागम् । ऋत्वियम् । यदि । श्रातः । जुहोतन । यदि । अश्रातः । ममत्तन ॥ १०.१७९.१
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 179; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 37; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 37; मन्त्र » 1
विषय - इन्द्र। राजा के कर की व्यवस्था।
भावार्थ -
हे विद्वानो ! (उत् तिष्ठत) उठो, उत्तम रीति से खड़े रहो, (इन्द्रस्य) उस ऐश्वर्यवान् आत्मा के (ऋत्वियम्) ऋतु २ में होने वाले (भागम्) सेवनीय, ग्राह्य ऐश्वर्य, कर आदि को (अव पश्यत) ध्यानपूर्वक देखो ! (यदि श्रातः) यदि पक गया है तो (जुहोतन) ग्रहण करो। (यदि अश्रातः) यदि नहीं पका है (ममत्तन) तो खेद करो, और प्रार्थना करो वा प्रजा वा भूमि को तृप्त करो। मदतिर्याच्ञा कर्मा। मदी हर्षग्लेपनयोः मद तृप्तियोगे। राष्ट्र में फसल पकने पर षष्ठांश राजा का होता है। प्रति फसल उस पर प्रजाजन ठीक ध्यान रखें। राजा पकने पर अवश्य ले, न पके, फसल न हो तो राजा प्रजा का पेट भरे। इसी प्रकार विद्वान् सूर्य, मेघादि के वृष्टि आदि अंश पर ध्यान रखें, यदि परिपक्व है, खूब उत्तम ग्रीष्म हुई है, तो यज्ञ करें, यदि ठीक नहीं हुई तो ईश्वर से जलादि की याचना करें वा कृत्रिम उपायों से आकाश को तृप्त और खेती को जल से सिंचन करें।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋषिः शिविरौशीनरः। २ प्रतर्दनः काशिराजः। ३ वसुमना रौहिदश्वः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्द:-१ निचृदनुष्टुप्। २ निचृत् त्रिष्टुप्। ३ त्रिष्टुप्॥ तृचं सूक्तम्॥
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