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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 179 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 179/ मन्त्र 1
    ऋषिः - शिबिरौशीनरः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    उत्ति॑ष्ठ॒ताव॑ पश्य॒तेन्द्र॑स्य भा॒गमृ॒त्विय॑म् । यदि॑ श्रा॒तो जु॒होत॑न॒ यद्यश्रा॑तो मम॒त्तन॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । ति॒ष्ठ॒त॒ । अव॑ । प॒श्य॒त॒ । इन्द्र॑स्य । भा॒गम् । ऋ॒त्विय॑म् । यदि॑ । श्रा॒तः । जु॒होत॑न । यदि॑ । अश्रा॑तः । म॒म॒त्तन॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत्तिष्ठताव पश्यतेन्द्रस्य भागमृत्वियम् । यदि श्रातो जुहोतन यद्यश्रातो ममत्तन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । तिष्ठत । अव । पश्यत । इन्द्रस्य । भागम् । ऋत्वियम् । यदि । श्रातः । जुहोतन । यदि । अश्रातः । ममत्तन ॥ १०.१७९.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 179; मन्त्र » 1
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 37; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (1)

    विषय

    इस सूक्त में राजा के लिए कररूप में खेती अन्न उद्यान का फल देना चाहिए, पका अन्न, उद्यान का रसीला फल, गौ के स्तन में दूध भी पका हुआ आहार कहलाता है, खेत का कच्चा अन्न भी खाया जाता है।

    पदार्थ

    (उत् तिष्ठत) हे मनुष्यों ! उठो, कार्यतत्पर होवो (इन्द्रस्य) राजा का (ऋत्वियम्) ऋतु में होनेवाले (भागम्) भाग को (अव पश्यत) ध्यान से देखो और निर्धारित करो (यदि श्रातः) यदि वह भाग पक गया हो, खेती में सम्पन्न हो गया हो, तो उसे (जुहोतन) समर्पित करो (यदि-अश्रातः) यदि वह वैसा नहीं पका, तो (ममत्तन) उसके रस से हर्षित करो ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चाहिए कि वे कर्मपरायण बने रहें, विशेषतः खेती करने और बगीचे लगाने में अधिक ध्यान दें। राजा या भूस्वामी को ऋतु पर पके अन्न का भाग दें, यदि उद्यान है, तो उसके रसीले फल प्रदान करने चाहिये ॥१॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अस्मिन् सूक्ते राज्ञे कृषेरन्नानि खलूद्यानस्य रसमयानि फलानि शुल्करूपेण दातव्यानि। कृषौ पक्वमन्नमुद्यानं च रसमयं पक्वं गवि च दुग्धमपि पक्वं भवतीति साधितम्।

    पदार्थः

    (उत्तिष्ठत) हे मानवाः ! कार्यतत्परा भवत (इन्द्रस्य) राज्ञः (ऋत्वियं भागम्) ऋतौ भवं भागम् (अव-पश्यत) निर्धारयत (यदि श्रातः) यदि स भागः श्रातः-पक्वो जातः कृषौ सम्पन्नो जातस्तर्हि तम् (जुहोतन) दत्त समर्पयत (यदि-अश्रातः) यदि न तथा पक्वस्तर्हि (ममत्तन) तस्य रसेन हर्षयत ॥१॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Citizens, friends, arise, see whether the seasonal yajnic share of Indra, the ruler, is ripe and ready. If so, offer it by way of yajnic oblation as tax duty. If not, do not remiss, accelerate the ripening process and give.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांनी कर्मपरायण बनावे. विशेषत: शेती व बागा लावण्यात अधिक लक्ष द्यावे. राजा किंवा शेताच्या (भूमीच्या) स्वामीला ऋतूप्रमाणे पिकलेल्या अन्नाचा भाग द्यावा. जर उद्यान असेल तर त्यातील रसदार फळे द्यावीत. ॥१॥

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