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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 63 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 63/ मन्त्र 2
    ऋषिः - गयः प्लातः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - पादनिचृज्ज्गती स्वरः - निषादः

    विश्वा॒ हि वो॑ नम॒स्या॑नि॒ वन्द्या॒ नामा॑नि देवा उ॒त य॒ज्ञिया॑नि वः । ये स्थ जा॒ता अदि॑तेर॒द्भ्यस्परि॒ ये पृ॑थि॒व्यास्ते म॑ इ॒ह श्रु॑ता॒ हव॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश्वा॑ । हि । वः॒ । न॒म॒स्या॑नि । वन्द्या॑ । नामा॑नि । दे॒वाः॒ । उ॒त । य॒ज्ञिया॑नि । वः॒ । ये । स्थ । जा॒ताः । अदि॑तेः । अ॒त्ऽभ्यः । परि॑ । ये । पृ॒थि॒व्याः । ते । मे॒ । इ॒ह । श्रु॒त॒ । हव॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वा हि वो नमस्यानि वन्द्या नामानि देवा उत यज्ञियानि वः । ये स्थ जाता अदितेरद्भ्यस्परि ये पृथिव्यास्ते म इह श्रुता हवम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वा । हि । वः । नमस्यानि । वन्द्या । नामानि । देवाः । उत । यज्ञियानि । वः । ये । स्थ । जाताः । अदितेः । अत्ऽभ्यः । परि । ये । पृथिव्याः । ते । मे । इह । श्रुत । हवम् ॥ १०.६३.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 63; मन्त्र » 2
    अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 3; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    हे (देवाः) उत्तम ज्ञानादि के प्रकाशक, धनादि के दाता, तेजस्वी जनो ! (वः) आप लोगों के (विश्वा हि नामानि) समस्त नाम और दुष्टों को दबाने वाले बल (नमस्यानि) आदर करने योग्य और (वन्द्या) स्तुति योग्य हैं। (उत) और इसी प्रकार (वः यज्ञियानि नामानि) आप लोगों के पूजा, आदर, सत्कारोचित एवं यज्ञ, दीक्षा ज्ञानोपार्जन, सत्संग दान आदि के द्वारा उत्पन्न नाम भी (नमस्यानि वन्द्या) आदरणीय और स्तुत्य हैं। (ये अदितेः जाताः स्थ) आप लोगों में से जो माता पिता वा भूमि वा राजा आदि से उत्पन्न हुए हैं, (ये अद्भ्यः परि) जो उत्तम आप्त जनों और प्रजाओं द्वारा, उनके ऊपर नेतारूप से (जाताः स्थ) उत्पन्न और प्रकट हुए हैं (ये पृथिव्याः) जो पृथिवी के ऊपर प्रसिद्ध हुए हैं (ते मे इह हवं श्रुतं) वे मेरे आह्वान, पुकार, अभ्यर्चना और वचन का श्रवण करें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - गयः प्लात ऋषिः। देवता—१—१४,१७ विश्वेदेवाः। १५, १६ पथ्यास्वस्तिः॥ छन्द:–१, ६, ८, ११—१३ विराड् जगती। १५ जगती त्रिष्टुप् वा। १६ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। १७ पादनिचृत् त्रिष्टुप्॥ सप्तदशर्चं सूक्तम्॥

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