Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 89 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 89/ मन्त्र 3
    ऋषिः - रेणुः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    स॒मा॒नम॑स्मा॒ अन॑पावृदर्च क्ष्म॒या दि॒वो अस॑मं॒ ब्रह्म॒ नव्य॑म् । वि यः पृ॒ष्ठेव॒ जनि॑मान्य॒र्य इन्द्र॑श्चि॒काय॒ न सखा॑यमी॒षे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒मा॒नम् । अ॒स्मै॒ । अन॑पऽवृत् । अ॒र्च॒ । क्ष्म॒या । दि॒वः । अस॑मम् । ब्रह्म॑ । नव्य॑म् । वि । यः । पृ॒ष्ठाऽइ॑व । जनि॑मानि । अ॒र्यः । इन्द्रः॑ । चि॒काय॑ । न । सखा॑यम् । ई॒षे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समानमस्मा अनपावृदर्च क्ष्मया दिवो असमं ब्रह्म नव्यम् । वि यः पृष्ठेव जनिमान्यर्य इन्द्रश्चिकाय न सखायमीषे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    समानम् । अस्मै । अनपऽवृत् । अर्च । क्ष्मया । दिवः । असमम् । ब्रह्म । नव्यम् । वि । यः । पृष्ठाऽइव । जनिमानि । अर्यः । इन्द्रः । चिकाय । न । सखायम् । ईषे ॥ १०.८९.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 89; मन्त्र » 3
    अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 14; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    हे विद्वन् ! तू (अस्मै) इस महान् प्रभु की (अर्च) उपासना पूजा कर। जो (समानम्) सर्वत्र समान, निष्पक्षपात, एकरस है। (अनप-वृत्) जो अपवृत् अर्थात् दूर विद्यमान नहीं, प्रत्युत सब के पास है, अथवा (अनप-वृत्) सबको प्रकट न होकर गूढ़ है। जो (क्ष्मया असमं) इस पृथ्वी के समान न स्थूल, परिमित होकर (दिवः असमं) आकाश वा सूर्य से भी कहीं (ब्रह्म) महान् होने से ‘ब्रह्म’ है। (यः) जो (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान्, तेजोमय, (अर्यः) सबका स्वामी होकर (जनिमानि) उत्पन्न होने वाले समस्त जीव प्राणियों को (पृष्ठा इव) पालनीय करके (विचिकाय) जानता है और (सखायम्) अपने मित्र भक्त जीव को (न ईषे) कभी उद्विग्न नहीं करता, उसे परे नहीं धकेलता। प्रत्युत उसे अपनी शरण में रखता है। नंगा नहीं करता, प्रत्युत बचा कर रखता है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋषि रेणुः॥ देवता—१–४, ६–१८ इन्द्रः। ५ इन्द्रासोमौ॥ छन्द:- १, ४, ६, ७, ११, १२, १५, १८ त्रिष्टुप्। २ आर्ची त्रिष्टुप्। ३, ५, ९, १०, १४, १६, १७ निचृत् त्रिष्टुप्। ८ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। १३ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्॥ अष्टादशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top