ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 55/ मन्त्र 20
ऋषिः - प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा
देवता - विश्वेदेवा, इन्द्रः पर्जन्यात्मा त्वष्टा वाग्निश्च
छन्दः - स्वराट्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
म॒ही समै॑रच्च॒म्वा॑ समी॒ची उ॒भे ते अ॑स्य॒ वसु॑ना॒ न्यृ॑ष्टे। शृ॒ण्वे वी॒रो वि॒न्दमा॑नो॒ वसू॑नि म॒हद्दे॒वाना॑मसुर॒त्वमेक॑म्॥
स्वर सहित पद पाठम॒ही । सम् । ऐ॒र॒त् । च॒म्वा॑ । स॒मी॒ची इति॑ स॒म्ऽई॒ची । उ॒भे । ते । अ॒स्य॒ । वसु॑ना । न्यृ॑ष्टे॒ इति॒ निऽऋ॑ष्टे । शृ॒ण्वे । वी॒रः । वि॒न्दमा॑नः । वसू॑नि । म॒हत् । दे॒वाना॑म् । अ॒सु॒र॒ऽत्वम् । एक॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
मही समैरच्चम्वा समीची उभे ते अस्य वसुना न्यृष्टे। शृण्वे वीरो विन्दमानो वसूनि महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
स्वर रहित पद पाठमही। सम्। ऐरत्। चम्वा। समीची इति सम्ऽईची। उभे। ते। अस्य। वसुना। न्यृष्टे इति निऽऋष्टे। शृण्वे। वीरः। विन्दमानः। वसूनि। महत्। देवानाम्। असुरऽत्वम्। एकम्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 55; मन्त्र » 20
अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 31; मन्त्र » 5
अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 31; मन्त्र » 5
विषय - उनके नाना अद्भुत कार्य।
भावार्थ -
(वीरः) वह सबका प्रेरक, बलवान् ! सर्वशक्तिमान् परमेश्वर (समीची) परस्पर संगत (चम्वा) सब जगत् को अपने भीतर लेने वाली, (मही) बड़ी आकाश और भूमि दोनों को दो सेनाओं को बड़े वीर नायक के समान (सम् ऐरत्) एक साथ चला रहा है। (ते उभे) वे दोनों (अस्य) उसके (वसुना) प्राणियों और लोकों को बसाने के सामर्थ्य और ऐश्वर्य से (नि-ऋष्टे) खूब पूर्ण व्याप्त हैं। वह सब प्रकार के (वसूनि) ऐश्वर्यों को धारण करता हुआ (शृण्वे) सर्वत्र सुना जाता है। वह ही (देवानाम् महत् एकम् असुरत्वम्) सूर्यादि देवों का एकमात्र अद्वितीय, बड़ा भारी प्रेरक बल है। राजा दो परस्पर संगत सेना और भोक्ता, स्त्री पुरुष वर्गों को भी वश करता, वे उसी के ऐश्वर्य से युक्त होती हैं। वह सब विद्वानों और वीरों को संञ्चालन करने में समर्थ है।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा ऋषिः। विश्वेदेवा देवताः। उषाः। २—१० अग्निः। ११ अहोरात्रौ। १२–१४ रोदसी। १५ रोदसी द्युनिशौ वा॥ १६ दिशः। १७–२२ इन्द्रः पर्जन्यात्मा, त्वष्टा वाग्निश्च देवताः॥ छन्दः- १, २, ६, ७, ९-१२, १९, २२ निचृत्त्रिष्टुप्। ४, ८, १३, १६, २१ त्रिष्टुप्। १४, १५, १८ विराट् त्रिष्टुप्। १७ भुरिक् त्रिष्टुप्। ३ भुरिक् पंक्तिः। ५, २० स्वराट् पंक्तिः॥
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