ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 29/ मन्त्र 1
ऋषिः - विश्वावारात्रेयी
देवता - अग्निः
छन्दः - विराट्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
त्र्य॑र्य॒मा मनु॑षो दे॒वता॑ता॒ त्री रो॑च॒ना दि॒व्या धा॑रयन्त। अर्च॑न्ति त्वा म॒रुतः॑ पू॒तद॑क्षा॒स्त्वमे॑षा॒मृषि॑रिन्द्रासि॒ धीरः॑ ॥१॥
स्वर सहित पद पाठत्री । अ॒र्य॒मा । मनु॑षः । दे॒वऽता॑ता । त्री । रो॒च॒ना । दि॒व्या । धा॒र॒य॒न्त॒ । अर्च॑न्ति । त्वा॒ । म॒रुतः॑ । पू॒तऽद॑क्षाः । त्वम् । ए॒षा॒म् । ऋषिः॑ । इ॒न्द्र॒ । अ॒सि॒ । धीरः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्र्यर्यमा मनुषो देवताता त्री रोचना दिव्या धारयन्त। अर्चन्ति त्वा मरुतः पूतदक्षास्त्वमेषामृषिरिन्द्रासि धीरः ॥१॥
स्वर रहित पद पाठत्री। अर्यमा। मनुषः। देवऽताता। त्री। रोचना। दिव्या। धारयन्त। अर्चन्ति। त्वा। मरुतः। पूतऽदक्षाः। त्वम्। एषाम्। ऋषिः। इन्द्र। असि। धीरः ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 29; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
विषय - तीन प्रधान बल । तीन सभाओं द्वारा राजा का स्थापन ।
भावार्थ -
भा०-हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! ( मनुषः ) मननशील जन ( अर्यमा ) शत्रुओं को संयम वा बन्धन करने वाले ( त्री ) तीन् और (दिव्या) दिव्य गुणों से युक्त ( रोचना ) प्रकाश करने वाले (त्री ) तीन साधनों को ( देवताता ) देवों, विद्वानों के उचित कार्यव्यवहार में ( धारयन्त ) धारण करें । अर्थात् दुष्टों को संयमन करने के लिये उनके पास तीन साधन, मन्त्रबल, सैन्यबल और ऐश्वर्यबल हों और ज्ञान-प्रकाश करने के लिये तीन वेदों के जानने वाले वा राजसभा, धर्मसभा, और विद्यासभा तीन हों । वे ( मरुतः ) मनुष्य ( पूतदक्षाः ) पवित्र बल से युक्त होकर (त्वा अर्चन्ति ) तेरी ही पूजा वा मान की वृद्धि करें । और ( त्वम् ) तू ( धीरः ) ज्ञान, बुद्धि वा कर्मकुशल, धैर्यवान् राष्ट्र शक्ति को धारण करने वाला होकर ( एषाम् ) इनको ( ऋषिः ) मन्त्रार्थं दिखाने वाला, इनका मार्ग सञ्चालक होकर (असि) रह । (२) शिष्यजन आचार्य के अधीन रहकर मन, वाणी, काम तीनों के संयम करने के बल धारण करें, तीन वेद वा तीन ज्ञानप्रकाशक वाणी, इन्द्रियों और मन, शब्द, अर्थ और उनमें सम्बन्ध का ज्ञान करें । वे गुरु की अर्चना करें वह उनका ऋषि हो । ( ३ ) सर्व द्रष्टा होने से परमेश्वर ऋषि, ऐश्वर्यवान् होने से 'इन्द्र' है और सर्वधारक होने से 'धीर' है । जीवगण मरण धर्मा होने से 'मरुत्' हैं । वे पवित्र ज्ञान-बल पाकर प्रभु की अर्चना करें, तीनों संयम बलों और तीन दिव्य ज्योतियों को अग्निवत्, विद्युत्, सूर्यवत् धारण करें ।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - गौरिवीतिः शाक्त्य ऋषिः ॥ १–८, ९–१५ इन्द्रः । ९ इन्द्र उशना वा ॥ देवता ॥ छन्दः–१ भुरिक् पंक्तिः । ८ स्वराट् पंक्तिः । २, ४, ७ त्रिष्टुप, । ३, ५, ६, ९,१०, ११ निचृत् त्रिष्टुप् । १२, १३, १४, १५ विराट् त्रिष्टुप् । पञ्चदशर्चं सूक्तम् ।।
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