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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 52 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 52/ मन्त्र 16
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - मरुतः छन्दः - बृहती स्वरः - पञ्चमः

    प्र ये मे॑ बन्ध्वे॒षे गां वोच॑न्त सू॒रयः॒ पृश्निं॑ वोचन्त मा॒तर॑म्। अधा॑ पि॒तर॑मि॒ष्मिणं॑ रु॒द्रं वो॑चन्त॒ शिक्व॑सः ॥१६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । ये । मे॒ । ब॒न्धु॒ऽए॒षे । गाम् । वोच॑न्त । सू॒रयः॑ । पृश्नि॑म् । वो॒च॒न्त॒ । मा॒तर॑म् । अध॑ । पि॒तर॑म् । इ॒ष्मिण॑म् । रु॒द्रम् । वो॒च॒न्त॒ । शिक्व॑सः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र ये मे बन्ध्वेषे गां वोचन्त सूरयः पृश्निं वोचन्त मातरम्। अधा पितरमिष्मिणं रुद्रं वोचन्त शिक्वसः ॥१६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र। ये। मे। बन्धुऽएषे। गाम्। वोचन्त। सूरयः। पृश्निम्। वोचन्त। मातरम्। अध। पितरम्। इष्मिणम्। रुद्रम्। वोचन्त। शिक्वसः ॥१६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 52; मन्त्र » 16
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 10; मन्त्र » 6

    भावार्थ -
    भा०-( ये सूरयः ) जो विद्वान् पुरुष ( मे ) मुझे ( बन्ध्वेषे ) बन्धुवत् चाहते हुए (गां वोचन्त ) वाणी का उपदेश करते हैं वे (पृश्निम् ) पालन करने वाले विद्वान् आचार्य और भूमि को भी ( मातरम् वोचन्त ) माता बतलाते हैं (अध ) और वे ( शिक्वसः ) शक्तिशाली पुरुष (इष्मिणम् ) बलवान् और ज्ञानवान् ( इन्द्रम् ) शत्रुओं को रुलाने वाले राजा और ज्ञानोपदेश करने वाले गुरु को ही ( पितरं वोचन्त ) 'पिता' नाम से कहते हैं । ( २ ) ( सूरयः ) सूर्य की किरण वा शक्तियें जीवों के परम बन्धु 'इष्' वृष्टि और अन्न को उत्पन्न करने के लिये (गां) भूमि और (पृश्निं) सूर्य को ( मातरं वोचन्त ) सब की माता बतलाते हैं ( अध ) और ( इष्मिणं ) अन्न सम्पदा से सम्पन्न ( रुद्रं ) पशु पालक कृषक जन और वृष्टियुक्त मेघ को (शिक्वसः) शक्तिशाली पुरुष एवं प्रबल वायु भी ( पितरं ) सब प्रजाओं का पालक पिता (वोचन्त ) बतलाते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्द:- १, ४, ५, १५ विराडनुष्टुप् । २, ७, १० निचृदनुष्टुप् । ६ पंक्तिः । ३, ९, ११ विराडुष्णिक् । ८, १२, १३ अनुष्टुप् । १४ बृहती । १६ निचृद् बृहती । १७ बृहती ॥ सप्तदशर्चं सूक्तम् ॥

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