Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 52 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 52/ मन्त्र 16
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - मरुतः छन्दः - बृहती स्वरः - पञ्चमः

    प्र ये मे॑ बन्ध्वे॒षे गां वोच॑न्त सू॒रयः॒ पृश्निं॑ वोचन्त मा॒तर॑म्। अधा॑ पि॒तर॑मि॒ष्मिणं॑ रु॒द्रं वो॑चन्त॒ शिक्व॑सः ॥१६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । ये । मे॒ । ब॒न्धु॒ऽए॒षे । गाम् । वोच॑न्त । सू॒रयः॑ । पृश्नि॑म् । वो॒च॒न्त॒ । मा॒तर॑म् । अध॑ । पि॒तर॑म् । इ॒ष्मिण॑म् । रु॒द्रम् । वो॒च॒न्त॒ । शिक्व॑सः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र ये मे बन्ध्वेषे गां वोचन्त सूरयः पृश्निं वोचन्त मातरम्। अधा पितरमिष्मिणं रुद्रं वोचन्त शिक्वसः ॥१६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र। ये। मे। बन्धुऽएषे। गाम्। वोचन्त। सूरयः। पृश्निम्। वोचन्त। मातरम्। अध। पितरम्। इष्मिणम्। रुद्रम्। वोचन्त। शिक्वसः ॥१६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 52; मन्त्र » 16
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 10; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    ये सूरयो मे बन्ध्वेषे गां प्र वोचन्त पृश्निं मातरं वोचन्त। अधा शिक्वस इष्मिणं पितरं रुद्रं वोचन्त ते मया सत्कर्त्तव्याः ॥१६॥

    पदार्थः

    (प्र) (ये) (मे) मम (बन्ध्वेषे) बन्धूनामिच्छायै (गाम्) वाचम् (वोचन्त) ब्रुवन्ति (सूरयः) विद्वांसः (पृश्निम्) अन्तरिक्षम् (वोचन्त) (ब्रुवन्ति) (मातरम्) जननीम् (अधा) अथ। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (पितरम्) पालकं जनकम् (इष्मिणम्) इष्मो बहुविधो [बलं] विद्यते यस्य तम् (रुद्रम्) दुष्टानां भयप्रदम् (वोचन्त) उपदिशेयुः (शिक्वसः) शक्तिमन्तः ॥१६॥

    भावार्थः

    मनुष्यैरेवं वेदितव्यं येऽस्मभ्यं विद्यां सुशिक्षां दद्युस्तेऽस्माभिः सदा माननीया भवेयुः ॥१६॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    (ये) जो (सूरयः) विद्वान् जन (मे) मेरी (बन्ध्वेषे) बन्धुओं की इच्छा के लिये (गाम्) वाणी को (प्र, वोचन्त) उत्तम प्रकार उच्चारण करते हैं और (पृश्निम्) अन्तरिक्ष और (मातरम्) माता का (वोचन्त) उपदेश करते हैं (अधा) इसके अनन्तर (शिक्वसः) सामर्थ्यवाले (इष्मिणम्) बहुत प्रकार का बल जिसका उस (पितरम्) पालन करनेवाले पिता और (रुद्रम्) दुष्टों के भय देनेवाले का (वोचन्त) उपदेश करते हैं, वे मुझ से सत्कार करने योग्य हैं ॥१६॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को इस प्रकार जानना चाहिये कि जो हम लोगों के लिये विद्या और उत्तम शिक्षा को देवें, वे हम लोगों से सदा आदर करने योग्य होवें ॥१६॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    राजा वा आचार्य का पिता माता का पद ।

    भावार्थ

    भा०-( ये सूरयः ) जो विद्वान् पुरुष ( मे ) मुझे ( बन्ध्वेषे ) बन्धुवत् चाहते हुए (गां वोचन्त ) वाणी का उपदेश करते हैं वे (पृश्निम् ) पालन करने वाले विद्वान् आचार्य और भूमि को भी ( मातरम् वोचन्त ) माता बतलाते हैं (अध ) और वे ( शिक्वसः ) शक्तिशाली पुरुष (इष्मिणम् ) बलवान् और ज्ञानवान् ( इन्द्रम् ) शत्रुओं को रुलाने वाले राजा और ज्ञानोपदेश करने वाले गुरु को ही ( पितरं वोचन्त ) 'पिता' नाम से कहते हैं । ( २ ) ( सूरयः ) सूर्य की किरण वा शक्तियें जीवों के परम बन्धु 'इष्' वृष्टि और अन्न को उत्पन्न करने के लिये (गां) भूमि और (पृश्निं) सूर्य को ( मातरं वोचन्त ) सब की माता बतलाते हैं ( अध ) और ( इष्मिणं ) अन्न सम्पदा से सम्पन्न ( रुद्रं ) पशु पालक कृषक जन और वृष्टियुक्त मेघ को (शिक्वसः) शक्तिशाली पुरुष एवं प्रबल वायु भी ( पितरं ) सब प्रजाओं का पालक पिता (वोचन्त ) बतलाते हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्द:- १, ४, ५, १५ विराडनुष्टुप् । २, ७, १० निचृदनुष्टुप् । ६ पंक्तिः । ३, ९, ११ विराडुष्णिक् । ८, १२, १३ अनुष्टुप् । १४ बृहती । १६ निचृद् बृहती । १७ बृहती ॥ सप्तदशर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    गां, मातरं, पितरम्

    पदार्थ

    [१] (ये) = जो प्राण (मे) = मेरे लिये (बन्धु एषे) = बन्धु उस मित्रभूत प्रभु के अन्वेषण के लिये (गाम्) = इस ज्ञान की वाणी का (प्रवोचन्त) = उपदेश करते हैं। जो प्राण हैं, वे (सूरयः) = ज्ञान को प्रेरित करनेवाले होते हुए इस पृश्निम् ज्योतियों के स्पर्शवाली (मातरम्) = मातृभूत वेदवाणी का (प्रवोचन्त) = उपदेश करते हैं। [२] (अधा) = अब (शिक्वसः) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले ये प्राण (इष्णिम्) = हृदयस्थरूपेण प्रेरणा को देनेवाले (रुद्रम्) = सब रोगों के द्रावक उस प्रभु का जो (पितरम्) = हमारे रक्षक हैं, उनका वोचन्त= प्रतिपादन करते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना के होने पर हमारा ज्ञान बढ़ता है [गाम्], हमारा वेद माता से परिचय होता है [मातरं], हम हृदयस्थ प्रेरक पिता प्रभु को जान पाते हैं [पितरं ] । इस प्रकार ये प्राण हमारी शक्ति को बढ़ाते हैं ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांनी हे जाणावे की जे आम्हाला विद्या व उत्तम शिक्षण देतात ते सदैव आदर करण्यायोग्य असतात. ॥ १६ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    I meet, associate, and write with the Maruts, those leading lights wise and brave who speak to me as to a friend and brother in search of human and divine bonding. Mighty powerful are they who speak to me of the Holy Word, of heat and light of the sun, the earth and the cow. They speak of the rainbow skies and spaces, and of Mother Nature, and then they reveal to me the omnipresent omnipotent Father and Rudra, lord of justice and mercy.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Significance of knowledge is stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    Those highly learned persons should be respected by me, who for the fulfilment of the desire of my kith and kin tell me about good speech and who tell me about the firmament as-mother. Afterwards, the mighty teachers tell me that a powerful and enlightened person who is terrifier of the wicked and who is protector of noble ones is to be regarded as father.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men should know that those who give us wisdom and good education should be ever respected.

    Foot Notes

    (वन्ध्वेषे ) बन्धूनामिच्छायै । इषु -इच्छायाम् (तुदा०) = For the fulfilment of the desire of the kith and kin. (पुश्निम् ) अन्तरिक्षम् । पृश्निरिति साधारणनाम (NG 1, 4) घुलोकान्तरिक्ष साधारणमित्यर्थ:। = Firmament. (शिक्वसः) शक्तिमन्तः । = Mighty. (इष्मिणम् ) इष्मो बहुविधो विद्यते यस्य तम्। = Endowed with much knowledge.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top