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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 52 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 52/ मन्त्र 8
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - मरुतः छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    शर्धो॒ मारु॑त॒मुच्छं॑स स॒त्यश॑वस॒मृभ्व॑सम्। उ॒त स्म॒ ते शु॒भे नरः॒ प्र स्य॒न्द्रा यु॑जत॒ त्मना॑ ॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शर्धः॑ । मारु॑तम् । उत् । शं॒स॒ । स॒त्यऽश॑वसम् । ऋभ्व॑सम् । उ॒त । स्म॒ । ते । शु॒भे । नरः॑ । प्र । स्प॒न्द्राः । यु॒ज॒त॒ । त्मना॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शर्धो मारुतमुच्छंस सत्यशवसमृभ्वसम्। उत स्म ते शुभे नरः प्र स्यन्द्रा युजत त्मना ॥८॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शर्धः। मारुतम्। उत्। शंस। सत्यऽशवसम्। ऋभ्वसम्। उत। स्म। ते। शुभे। नरः। प्र। स्यन्द्राः। युजत। त्मना ॥८॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 52; मन्त्र » 8
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 9; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्विद्वान् किं कुर्यादित्याह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वँस्त्व मारुतं शर्धः सत्यशवसमृभ्वसमुच्छंस। उत स्म ते स्यन्द्रा नरो यूयं शुभे त्मना परमात्मानं प्र युजत ॥८॥

    पदार्थः

    (शर्धः) बलम् (मारुतम्) मनुष्याणामिदम् (उत्) (शंस) स्तुहि (सत्यशवसम्) सत्यं शवो बलं यस्य (ऋभ्वसम्) ऋभुं मेधाविनमसते गृह्णाति तम्। ऋभुरिति मेधाविनामसु पठितम्। (निघं०३.१५) अस गत्यादिः। (उत) (स्म) (ते) (शुभे) (नरः) नेतारो मनुष्याः (प्र) (स्यन्द्राः) धैर्य्यगतयः (युजत) (त्मना) आत्मना ॥८॥

    भावार्थः

    मनुष्यैरुत्तमं बलं परमात्मा च सततं प्रशंसनीयाः ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर विद्वान् क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वन् ! आप (मारुतम्) मनुष्यों के सम्बन्धी इस (शर्धः) बल और (सत्यशवसम्) सत्य बल जिसका उस (ऋभ्वसम्) बुद्धिमान् को ग्रहण करनेवाले की (उत्, शंस) अच्छे प्रकार स्तुति करो (उत) और (स्म) निश्चित (ते) वे (स्यन्द्राः) धीरतायुक्त गमनवाले (नरः) नायक आप लोग (शुभे) उत्तम कार्य में (त्मना) आत्मा से परमात्मा को (प्र, युजत) प्रयुक्त करो ॥८॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चाहिये कि उत्तम बल और परमात्मा की निरन्तर प्रशंसा करें ॥८॥

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    विषय

    वायुवत् वीरों के बल ।

    भावार्थ

    भा०—हे विद्वान् पुरुष ! तू ( सत्य-शवसम् ) सत्य ज्ञान और बल से युक्त (ऋभ्वसम् ) सत्य से या बड़े तेज से प्रकाशित और सामर्थ्यवान पुरुषों को प्राप्त ( मारुतं शर्धः ) वायु के तुल्य उत्तम वीर पुरुषों के बल को ( उत् शंस ) उत्तम रीति से बतला, उसके लाभ और गुणों का वर्णन कर । (ते) वे ( नरः ) नायक पुरुष ( शुभे) राष्ट्र की शोभा के लिये ( स्पन्द्राः ) शनैः २ आगे बढ़ने हारे होकर ( त्मना ) अपने सामर्थ्य से ( प्र युजत स्म ) उत्तम २ कार्य एवं प्रयोग करते हैं। अध्यात्म में — विद्वान लोग कल्याण के लिये शनैः २ आगे २ बड़ते हुए अपने आप से ( प्र युजत ) उत्तम समाधि योग करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्द:- १, ४, ५, १५ विराडनुष्टुप् । २, ७, १० निचृदनुष्टुप् । ६ पंक्तिः । ३, ९, ११ विराडुष्णिक् । ८, १२, १३ अनुष्टुप् । १४ बृहती । १६ निचृद् बृहती । १७ बृहती ॥ सप्तदशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    'सत्यशवस्' मरुद्गण

    पदार्थ

    [१] हे मनुष्य! तू (मारुतम्) = प्राणसम्बन्धी (शर्ध:) = बल का (उत् शंस) = उत्कर्षेण शंसन कर | यह प्राणों का बल (सत्यशवसम्) = सत्य के बलवाला है, मनों में सत्य का संचार करता है। प्राणसाधक असत्य नहीं बोलता । (ऋभ्वसम्) = यह बल महान् है अथवा ऋत से दीप्त होता है । यह प्राणसाधक ऋतमय जीवनवाला होता है । [२] (उत) = और (ते) = वे (स्पन्द्राः) = शरीर में सूक्ष्म गतिवाले प्राण (शुभे) = शुभ कार्यों में (स्म) = निश्य से (प्र युजत) = प्रकर्षण युक्त करते हैं और अन्ततः (त्मना) = आत्मा से हमारा योग करानेवाले होते हैं। 'शुभ्' शब्द का अर्थ 'दीप्ति, आनन्द व रेतः कणरूप जल' भी है। ये प्राण 'ज्ञानदीप्ति, नीरोगता के आनन्द व उर्ध्वरेतस्कता' को भी प्राप्त कराते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणों का बल हमें सत्यवादी व महान् बनाता है। ये प्रवण 'ज्ञानदीप्ति, आनन्द व ऊर्ध्वरेतस्कता' को प्राप्त कराके हमें प्रभु सम्पर्क को प्राप्त कराते हैं।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांनी उत्तम बल प्राप्त करून परमेश्वराची निरंतर प्रशंसा करावी. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Honour and celebrate the strength and courage of humanity, admire and value the honest wisdom and rectitude of the scientist and the expert. O leading lights and brave pioneers of the human nation, moving forward with steadiness and dignity, join the onward march of humanity for a noble divine purpose. Join it conscientiously, honestly, without reservation.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should a learned men do is told further.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned person ! praise the strength of thoughtful men who are endowed with truth strength or whose strength is truth. They who accept as guides very wise men. leading men of persevering movement! unite yourselves with God for your welfare.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men should always admire good strength and God the Almighty.

    Foot Notes

    (ऋम्वसम् ) ऋभुं मेधाविनमसते गृह्यति तम् । ऋभुरिति मेधाविनाम (NG 3, 15 ) अस गत्यादिः । = Acquiring of the wisdom. (स्यन्द्रा:) धेर्य्यगतयः । = Of preserving movement.

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