ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 52/ मन्त्र 6
ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः
देवता - मरुतः
छन्दः - विराडनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
आ रु॒क्मैरा यु॒धा नर॑ ऋ॒ष्वा ऋ॒ष्टीर॑सृक्षत। अन्वे॑नाँ॒ अह॑ वि॒द्युतो॑ म॒रुतो॒ जज्झ॑तीरिव भा॒नुर॑र्त॒ त्मना॑ दि॒वः ॥६॥
स्वर सहित पद पाठआ । रु॒क्मैः । आ । यु॒धा । नरः॑ । ऋ॒ष्वाः । ऋ॒ष्टीः । अ॒सृ॒क्ष॒त॒ । अनु॑ । ए॒ना॒न् । अह॑ । वि॒ऽद्युतः॑ । म॒रुतः॑ । जज्झ॑तीःऽइव । भा॒नुः । अ॒र्त॒ । त्मना॑ । दि॒वः ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ रुक्मैरा युधा नर ऋष्वा ऋष्टीरसृक्षत। अन्वेनाँ अह विद्युतो मरुतो जज्झतीरिव भानुरर्त त्मना दिवः ॥६॥
स्वर रहित पद पाठआ। रुक्मैः। आ। युधा। नरः। ऋष्वाः। ऋष्टीः। असृक्षत। अनु। एनान्। अह। विऽद्युतः। मरुतः। जज्झतीःऽइव। भानुः। अर्त। त्मना। दिवः ॥६॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 52; मन्त्र » 6
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 9; मन्त्र » 1
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अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 9; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे विद्वांसः ! यथा ऋष्वा नरो युधर्ष्टीरान्वसृक्षत। एनानह जज्झतीरिव विद्युतो मरुतो दिवो भानुस्त्मना ज्ञातुं योग्याः सन्ति तान् यूयं रुक्मैराऽऽर्त्त ॥६॥
पदार्थः
(आ) समन्तात् (रुक्मैः) रोचमानैः प्रदीप्तैः (आ) (युधा) युद्धेन (नरः) नायकाः (ऋष्वाः) महान्तः (ऋष्टीः) प्राप्ताः सेनाजनाः (असृक्षत) सृजन्तु (अनु) (एनान्) (अह) विनिग्रहे (विद्युतः) (मरुतः) वायो (जज्झतीरिव) शब्दकारिण्यः शीघ्रगतयो वा ता इव (भानुः) दीप्तिः (अर्त्त) प्राप्नुत (त्मना) आत्मना (दिवः) कामयमानाः ॥६॥
भावार्थः
विद्वांसो मनुष्यान् विद्युदादिविद्याः प्रापयन्तु ॥६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे विद्वानो ! जैसे (ऋष्वाः) बड़े (नरः) अग्रणी जन (युधा) युद्ध से (ऋष्टीः) प्राप्त हुए सेनाओं के जन (आ, अनु, असृक्षत) सब प्रकार अनुकूल उत्पन्न करें और (एनान्) इनको (अह) ग्रहण करने में (जज्झतीरिव) शब्द करने वा शीघ्र चलनेवालियों के सदृश (विद्युतः) बिजुली और (मरुतः) पवन की (दिवः) कामना करते हुए जन और (भानुः) दीप्ति (त्मना) आत्मा से जानने योग्य हैं, उनको आप (रुक्मैः) रोचमान प्रदीप्तों से (आ) सब प्रकार (अर्त्त) प्राप्त हूजिये ॥६॥
भावार्थ
विद्वान् जन मनुष्यों के लिये बिजुली आदि विद्याओं को प्राप्त करावें ॥६॥
विषय
बिजुलीयुक्त वायुओं के तुल्य शस्त्रास्त्रयुक्त वीर सेनाओं के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
भा०- ( एनान् मरुतः अनु जज्झतीरिव विद्युतः ) जिस प्रकार तीव्र वेग वाले वायु गण के पीछे २ शब्द करने वाली, और गर्जना वाली जलधाराएं और बिजुलियां उत्पन्न होती हैं ( एनान् मरुतः अनु ) इन वेगवान् ( सैनिकों के पीछे २ ( विद्युतः ) विशेष दीप्तियुक्त और ( जज्झतीः ) गर्जना करने वाली तोपें और शक्तिमान् विद्युदस्त्र चलें। (ऋष्वा: नरः ) बड़े २ नायक गण ( रुक्मैः ) कान्तियुक्त अस्त्रों और ( युधा ) युद्ध या शत्रु पर प्रहार करने वाले बल से युक्त, (ऋष्टीः) अपनी २ सेनाओं को (आअसृक्षत ) आगे २ ले चलें। इस प्रकार विजिगीषु राजा ( भानुः ) सूर्यवत् तेजस्वी होकर (दिवः) किरणों के तुल्य कामना योग्य विजयों को (त्मना अर्त) अपने सामर्थ्य से ही प्राप्त करे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्द:- १, ४, ५, १५ विराडनुष्टुप् । २, ७, १० निचृदनुष्टुप् । ६ पंक्तिः । ३, ९, ११ विराडुष्णिक् । ८, १२, १३ अनुष्टुप् । १४ बृहती । १६ निचृद् बृहती । १७ बृहती ॥ सप्तदशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
उत्तम आयुधों की प्राप्ति
पदार्थ
[१] (ऋष्वाः) = महान् ये मरुत [प्राण] (नरः) = हमें जीवन-यात्रा में आगे और आगे ले चलनेवाले हैं। ये मरुत् (रुक्मैः) = देदीप्यमान ज्ञान-ज्योतियों के द्वारा तथा युधा रोगों के साथ युद्ध के द्वारा (ऋष्टीः) = आयुध विशेषों को, जीवन-यात्रा के लिये आवश्यक इन्द्रियाँ, मन व बुद्धि रूप अस्त्रों को (आ असृक्षत) = सर्वत्र उत्पन्न करते हैं। प्राणसाधना के द्वारा ये अस्त्र शक्तिशाली व दीप्त बनते हैं। [२] (अह) = निश्चय से (एनान् मरुतः अनु) = इन प्राणों के अनुसार ही (जज्झती: इव) = जलों की तरह, रेत: कणों की तरह (विद्युतः) = विशिष्ट दीप्तियाँ तथा (दिवः भानुः) = ज्ञान का प्रकाश (त्मना अर्त) = स्वयं प्राप्त होता है। प्राणसाधना के परिणामस्वरूप रेत: कणों की ऊर्ध्वगति होती है तथा ज्ञानदीप्ति बढ़ती है।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना से 'इन्द्रियाँ, मन व बुद्धि' निर्दोष बनते हैं। रेतः कणों की ऊर्ध्वगति होकर ज्ञानाग्नि दीप्त होती है। -
मराठी (1)
भावार्थ
विद्वान लोकांनी माणसांना विद्युत इत्यादी विद्या प्राप्त करवावी. ॥ ६ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
While the leading lights and mighty warriors with blazing arms launch the attack upon the enemy, then, for sure, upon the heels of these tempestuous forces and shining leaders the light and splendour of the world follows spontaneously like roaring streams of water.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The men's duties are highlighted.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
As leading great men train military or armies, agreeable (loyal Ed.) to them at the time of the battle, therefore, you should pick up these brave men who are quick like the winds, rapid and make big sound or lighting to seek victory and glory. Get them equipped with the shining arms and weapons.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
It is the duty of all enlightened persons, scholars scientists to give training of science of electricity etc. to the loyal people.
Foot Notes
(ऋष्वा:) महान्तः । ऋष्वा इति महन्नाम (NG 3, 3)। = Great. ऋष्टी:) प्राप्ताः सेनाजनाः । (ऋष्टी:) ऋषी -गतौ (तु० ) | गतेस्त्रिष्वर्थेष्वत्न प्राप्त्यर्थंग्रहणम् । = Men of the armies to come to see the king or the commander of the armies. (जज्झतीरिव ) शब्दकारिण्यः शीघ्रगतयो वा ता इव । जज्भूतीरिव शब्दानुकरणम् ! = Making noise and rapid movement.
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