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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 52 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 52/ मन्त्र 3
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - मरुतः छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    ते स्य॒न्द्रासो॒ नोक्षणोऽति॑ ष्कन्दन्ति॒ शर्व॑रीः। म॒रुता॒मधा॒ महो॑ दि॒वि क्ष॒मा च॑ मन्महे ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते । स्प॒न्द्रासः॑ । न । उ॒क्षणः॑ । अति॑ । स्क॒न्द॒न्ति॒ । शर्व॑रीः । म॒रुता॑म् । अध॑ । महः॑ । दि॒वि । क्ष॒मा । च॒ । म॒न्म॒हे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ते स्यन्द्रासो नोक्षणोऽति ष्कन्दन्ति शर्वरीः। मरुतामधा महो दिवि क्षमा च मन्महे ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ते। स्यन्द्रासः। न। उक्षणः। अति। स्कन्दन्ति। शर्वरीः। मरुताम्। अध। महः। दिवि। क्षमा। च। मन्महे ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 52; मन्त्र » 3
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 8; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वन् ! ये महो दिवि मरुतां सन्निधौ क्षमाऽधा च स्यन्द्रासो नोक्षणः शर्वरीरति ष्कन्दन्ति तान्वयं मन्महे ते सर्वैर्मनुष्यैर्विज्ञातव्याः ॥३॥

    पदार्थः

    (ते) (स्यन्द्रासः) किञ्चिच्चेष्टमानाः (न) इव (उक्षणः) सेचकान् (अति) (स्कन्दन्ति) (शर्वरीः) रात्रीः (मरुताम्) मनुष्याणाम् (अधा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (महः) महति (दिवि) प्रकाशे (क्षमा) (च) (मन्महे) विजानीमः ॥३॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः । ये मनुष्या अहर्निशं पुरुषार्थमनुतिष्ठन्ति ते दुःखमुल्लङ्घन्ते ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वन् ! जो (महः) बड़े (दिवि) प्रकाश और (मरुताम्) मनुष्यों के समीप में (क्षमा) (अधा, च) और इसके अनन्तर (स्यन्द्रासः) कुछ चेष्टा करते हुओं के (न) सदृश (उक्षणः) सेवन करने वा (शर्वरीः) रात्रियों को (अति, स्कन्दन्ति) अत्यन्त प्राप्त होते हैं, उनको हम लोग (मन्महे) विशेष प्रकार से जानते हैं (ते) वे सब मनुष्यों को जानने योग्य हैं ॥३॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मनुष्य दिन-रात्रि पुरुषार्थ करते हैं, वे दुःख का उल्लङ्घन करते हैं ॥३॥

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    विषय

    वायुवत् उनके कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    भा०- (ते) वे वीर पुरुष ( स्पन्द्वासः ) कुछ शनैः २ आगे बढ़ने हारे (उक्षणः) सेचन समर्थ मेघों और सूर्य की किरणों के समान (शर्वरीः ) रात्रिवत् अपने पक्ष का नाश करने वाली शत्रु सेनाओं को ( अति स्कन्दन्ति ) अति क्रमण कर जाते हैं, वा (उक्षाणः न शर्वरीः अतिस्कन्दन्ति ) जिस प्रकार सांड गौओं को प्राप्त कर उनमें वीर्य आहित करता है, उसी प्रकार शनैः २ गतिशील वायुगण रात्रि-काल में जल प्रच्युत करते या अन्तरिक्ष को जलयुक्त करते हैं। ( अध ) और हम ( मरुताम् ) उन वीर पुरुषों की ( दिवि ) व्यवहार, तेज और विजयेच्छा में (महः क्षमा च ) बड़े सामर्थ्य और सहनशीलता को ( मन्महे ) स्वीकार करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्द:- १, ४, ५, १५ विराडनुष्टुप् । २, ७, १० निचृदनुष्टुप् । ६ पंक्तिः । ३, ९, ११ विराडुष्णिक् । ८, १२, १३ अनुष्टुप् । १४ बृहती । १६ निचृद् बृहती । १७ बृहती ॥ सप्तदशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    'स्पन्द्रासः न उक्षण: ' मरुतः

    पदार्थ

    [१] (ते) = वे प्राण (न) = जैसे (स्पन्द्रासः) - शरीर में गतिवाले होते हैं, [स्पदि किञ्चिच्चलने] जितनी-जितनी इनकी गति सूक्ष्म होती है उतना उतना ही ये (उक्षण:) = हमारे जीवनों में शक्ति का सेचन करनेवाले होते हैं। ये प्राण (शर्वरी:) = अन्धकार रूप रात्रियों को (अतिस्कन्दन्ति) = लाँघ जाते हैं, अर्थात् जीवन में से अन्धकार को दूर भगा देते हैं। [२] (अधा) = अब हम (मरुताम्) = इन प्राणों के (महः) = तेज को (दिवि) = मस्तिष्करूप द्युलोक में (च) = और (क्षमा) = इस शरीररूप पृथिवी में (मन्महे) = स्तुत करते हैं। इन प्राणों के कारण ही मस्तिष्क ज्ञान सूर्य से दीप्त हो उठता है और इन्हीं के कारण शरीर तेजस्विता से दृढ़ बन जाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना द्वारा प्राणों की गति सूक्ष्म होने पर सब अन्धकार दूर हो जाएगा। तब मस्तिष्क दीप्त बनेगा, शरीर शक्ति सिक्त होकर दृढ़ होगा।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे रात्रंदिवस पुरुषार्थ करतात ती दुःखातून पार पडतात. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Streaming and overflowing with generosity like the cloud and the sun, they shower the nights and dawns of twilight with showers of rain and dew. We admire and celebrate the grandeur, potential and forbearance of the winds on the heights of heaven and the strength and stability of vibrant people in the brilliance of humanity.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The subject of honourable is still continued.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned person ! we know well those great men who possess great light of knowledge and are in the company of the heroic men. They forgive others' faults and are like those who are somewhat active and get over difficulties through the might and are virile sprinklers of happiness upon others. (All men should know such enlightened persons).

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The men who work hard day and night, overcome all sufferings or miseries.

    Foot Notes

    (स्यन्द्रास:) किञ्चिच्चेष्टमानाः। स्यादि -किंचिच्चलने । = Somewhat a little active. (उक्षण:) सेचकान् । उक्ष सेचने । = Virile spikers of happiness. (शर्वरी:) रात्रीः । शर्वरी इति रात्रिनाम (NG 1, 7) । = Nights.

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