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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 52 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 52/ मन्त्र 11
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - मरुतः छन्दः - विराडुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    अधा॒ नरो॒ न्यो॑ह॒तेऽधा॑ नि॒युत॑ ओहते। अधा॒ पारा॑वता॒ इति॑ चि॒त्रा रू॒पाणि॒ दर्श्या॑ ॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अध॑ । नरः॑ । नि । ओ॒ह॒ते॒ । अध॑ । नि॒ऽयुतः॑ । ओ॒ह॒ते॒ । अध॑ । पारा॑वताः । इति॑ । चि॒त्रा । रू॒पाणि॑ । दर्श्या॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अधा नरो न्योहतेऽधा नियुत ओहते। अधा पारावता इति चित्रा रूपाणि दर्श्या ॥११॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अधः। नरः। नि। ओहते। अध। निऽयुतः। ओहते। अध। पारावताः। इति। चित्रा। रूपाणि। दर्श्या ॥११॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 52; मन्त्र » 11
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 10; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    मनुष्याः क्रमेण विद्यादिव्यवहारं प्राप्नुयुरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! अधा यो नरो विद्याकार्य्याणि न्योहतेऽधा नियुत ओहतेऽधा पारावता दर्श्या चित्रा रूपाणीति साक्षात्करोति स कृतकृत्यो जायते ॥११॥

    पदार्थः

    (अधा) अथ। अत्र सर्वत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (नरः) विद्यासु नायकः (नि) निश्चयेन (ओहते) प्राप्नोति प्रापयति वा (अधा) (नियुतः) निश्चितवाय्वादिगतिमान् (ओहते) (अधा) (पारावताः) पारावति दूरदेशे भवाः (इति) अनेन प्रकारेण (चित्रा) चित्राण्यद्भुतानि (रूपाणि) (दर्श्या) द्रष्टुं योग्यानि ॥११॥

    भावार्थः

    मनुष्यैः पुरस्ताद्ब्रह्मचर्येण विद्या अधीत्य तदनन्तरं कार्य्यरचनकौशलं साक्षात्कृत्य पुनरनुमानेन दूरस्थानामदृश्यानां पदार्थानां विज्ञानं कृत्वाऽश्चर्य्याणि कर्माणि कर्त्तव्यानि ॥११॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य क्रम से विद्यादि व्यवहार को प्राप्त होवें, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (अधा) इसके अनन्तर जो (नरः) विद्याओं में अग्रणी जन विद्याओं के कार्यों को (नि) निश्चय करके (ओहते) प्राप्त होते हैं, और (अधा) इसके अनन्तर (नियुतः) निश्चित वायु आदि गमनवाला (ओहते) प्राप्त होता वा प्राप्त कराता है (अधा) इसके अनन्तर (पारावता) दूर देश में होनेवाले (दर्श्या) देखने के योग्य (चित्रा) अद्भुत (रूपाणि) रूपों के (इति) इस प्रकार से प्रत्यक्ष करता है, वह कृतकृत्य होता है ॥११॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चाहिये कि पहिले ब्रह्मचर्य्य से विद्याओं को प़ढ़कर उसके अनन्तर कार्य्यों के रचने में प्रवीणता को प्रत्यक्ष करके फिर अनुमान से दूर में स्थित अदृश्य पदार्थों के विज्ञान को करके आश्चर्य्ययुक्त कार्य्य करें ॥११॥

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    विषय

    वायुवत् वीर विद्वान् वैश्यों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    भा०- ( अध) और (नियुतः नरः) नाना पदों पर नियुक्त वा लक्षों की संख्या में नायक गण (नि ओहते) नियत पद को धारण करते हैं । वे (अध) भी (पारावताः) दूर २ देशों तक जाकर भी (चित्रा) अद्भुत (दया) दर्शनीय, ( रूपाणि ) रूपों वा पदार्थों को ( ओहते ) धारण करते हैं । और स्वयं भी देश से देशान्तरों में व्यापारी होकर नाना पदार्थ लेजाते हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्द:- १, ४, ५, १५ विराडनुष्टुप् । २, ७, १० निचृदनुष्टुप् । ६ पंक्तिः । ३, ९, ११ विराडुष्णिक् । ८, १२, १३ अनुष्टुप् । १४ बृहती । १६ निचृद् बृहती । १७ बृहती ॥ सप्तदशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    चित्रारूपाणि दर्या

    पदार्थ

    [१] (अध) = अब (नरः) = शरीर यज्ञ का प्रणयन करनेवाले ये प्राण (नि ओहते) = निश्चय से जीवन भर का वहन करते हैं। (अधा) = और (नियुतः) = सब इन्द्रियाश्वों का (ओहते) = ये ही वहन करते हैं, सब इन्द्रियों में ये ही शक्ति का स्थापन करते हैं। [२] (अधा) = अब ये (पारावता:) = दूर-दूर देश में ले जानेवाले होते हैं, इस शरीर को छोड़ने पर ये ही जीव को सुदूर देश में किसी अन्य शरीर में प्राप्त कराते हैं। 'उदान' वायु का तो कार्य यह ही माना गया है । (इति) = इस प्रकार इन प्राणों के (रूपाणि) = रूप चित्र अद्भुत हैं और दर्या दर्शनीय हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राण हमें उन्नति-पथ पर ले-चलनेवाले हैं, ये ही इन्द्रियों को शक्ति देते हैं, ये ही सुदूर देशों में ले जाते हैं ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांनी प्रथम ब्रह्मचर्याने विद्या शिकून कार्यात निपुण व्हावे. प्रात्यक्षिक करून अनुमानाने पुन्हा दूर असलेल्या अदृश्य पदार्थांना जाणून आश्चर्यजनक कार्य करावे. ॥ ११ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Leaders of knowledge and advancement, sometimes they carry the burdens by themselves, sometimes appointed as a team in cooperation with others, and sometimes stationed far away: thus their forms and functions are various, wondrous, beautiful and beatific.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Men should acquire knowledge and other dealings step by step is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    That man becomes gratified and makes his life successful, who being a leader in the acquisition of knowledge attains it and helps others to do so, or who attains it being endowed with the certain movement of the wind etc., and who afterwards goes to distant places and feels (experiments. Ed.). These forms found in such a distant place are wonderful and worth seeing (or visiting. Ed.).

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men should study all sciences with the observance of Brahmacharya, then should visualise their practical applications in arts and industries, and should get the knowledge of distant objects by inference and other means.

    Foot Notes

    (ओहते) प्राप्नोति प्रापयति वा । नियुतो वायो: इति आपिक्षेपयोजनानि (NG 1, 15 ) आ + वह प्रापणे (भ्वा० ) = Attains or' enables others to attain (नियुतः ) निश्चितवाय्वादिगतिमान् । यु-मिश्रणमिश्रणयोः (अदा० ) = Endowed with a certain movement of the wind.

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