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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 52 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 52/ मन्त्र 10
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - मरुतः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    आप॑थयो॒ विप॑थ॒योऽन्त॑स्पथा॒ अनु॑पथाः। ए॒तेभि॒र्मह्यं॒ नाम॑भिर्य॒ज्ञं वि॑ष्टा॒र ओ॑हते ॥१०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आप॑थयः । विऽप॑थयः । अन्तः॑ऽपथाः । अनु॑ऽपथाः । ए॒तेभिः । मह्य॑म् । नाम॑ऽभिः । य॒ज्ञम् । वि॒ऽस्ता॒रः । ओ॒ह॒ते॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आपथयो विपथयोऽन्तस्पथा अनुपथाः। एतेभिर्मह्यं नामभिर्यज्ञं विष्टार ओहते ॥१०॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आऽपथयः। विऽपथयः। अन्तःऽपथा। अनुऽपथाः। एतेभिः। मह्यम्। नामऽभिः। यज्ञम्। विऽस्तारः। ओहते ॥१०॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 52; मन्त्र » 10
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 9; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    मनुष्यैः सर्वे विद्याधर्ममार्गा अन्वेषणीया इत्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! आपथयो विपथयोऽन्तस्पथाऽनुपथा एतेभिर्नामभिर्मह्यं यज्ञं विष्टार ओहते ॥१०॥

    पदार्थः

    (आपथयः) समन्तादभिमुखः पन्था येषान्ते (विपथयः) विविधा विरुद्धा वा पन्थानो येषान्ते (अन्तस्पथा) अन्तराभ्यन्तरे पन्था येषान्ते (अनुपथाः) अनुकूलः पन्था येषान्ते (एतेभिः) मार्गैर्मार्गस्थैर्वा (मह्यम्) (नामभिः) संज्ञाभिः (यज्ञम्) विद्वत्सत्कारादिकम् (विष्टारः) प्रसारः (ओहते) प्राप्नोति ॥१०॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या ! यूयं सर्वविद्यातज्जन्यक्रियाकौशलमार्गान् यथावत् साक्षात् कृत्याऽन्यानपि सम्यक् विज्ञापयत ॥१०॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्यों को समस्त विद्या धर्ममार्ग ढूँढने चाहियें, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (आपथयः) सब ओर अभिमुख मार्ग जिनका वे और (विपथयः) अनेक प्रकार के वा विरुद्ध मार्ग जिनके वे और (अन्तस्पथा) भीतर मार्ग जिनके वे और (अनुपथाः) अनुकूल मार्ग जिनका वे (एतेभिः) इन मार्गों में स्थित हुओं और (नामभिः) संज्ञाओं से (मह्यम्) मेरे लिये (यज्ञम्) विद्वानों के सत्कार आदि कर्म को (विष्टारः) विस्तार (ओहते) प्राप्त होता है ॥१०॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! आप लोग सम्पूर्ण विद्याओं और उनसे उत्पन्न क्रिया हुए क्रिया कौशल मार्गों को यथावत् प्रत्यक्ष करके अन्यों को भी उत्तम प्रकार जनाओ सिखलाओ ॥१०॥

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    विषय

    अन्तःपथ, अनुपथ आदि नाना मार्गों में विचरने का उपदेश ।

    भावार्थ

    भा०-( विस्तारः) विविध प्रकार से विस्तृत देश तथा उसमें रहने वाले प्रजा वर्ग (मह्यं ) मुझे ( एतेभिः नामभिः ) इन २ नामों या रूपों से (यज्ञम् ओहते ) यज्ञ, अर्थात् सुप्रबन्ध को धारण करें । वे ( आ-पथयः ) सब ओर जाने वाले मार्गों से युक्त, (वि-पथयः) विशेष मार्ग वाले (अन्तः पथाः ) भीतर, भूगर्भ के बीच २ में से जाने योग्य मार्ग वाले और (अनु-पथाः ) बड़े २ मार्गों में आ मिलने वाले गौण मार्गों के भी स्वामी हों । इति नवमो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्द:- १, ४, ५, १५ विराडनुष्टुप् । २, ७, १० निचृदनुष्टुप् । ६ पंक्तिः । ३, ९, ११ विराडुष्णिक् । ८, १२, १३ अनुष्टुप् । १४ बृहती । १६ निचृद् बृहती । १७ बृहती ॥ सप्तदशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    'जीवन-यज्ञ के वाहक' प्राण

    पदार्थ

    [१] शरीर में प्राण विविध रूपों में गति कर रहे हैं। उनमें 'व्यान' 'सर्वशरीरग' कहलाता है। इन व्यान के प्रकार के मरुतों को यहाँ ('आपथयः') = समन्तात् पथवाले, शरीर में चारों ओर गतिवाले। 'उदान' विविध मार्गों से जीव को ले जाता है। इस उदान के प्रकार के मरुतों को ('विपथय:') = कहा है, विविध मार्गोंवाले। 'समान' वायु शरीर के अन्दर स्थित हुआ हुआ समगति का कारण होता है, ये ('अन्तस्पथा:') = हैं, शरीर के मध्य में गतिवाले। 'प्राण और अपान' ('अनुपथाः') = कहे गये हैं, अनुकूल मार्गोंवाले। इनमें अपान शोधन करता है और प्राण शक्ति का संचार करता है । [२] (एनेभिः नामभिः) = इन नामों से प्रसिद्धि को प्राप्त हुए हुए (विष्टारः) = विविध कार्यों को विस्तार करनेवाले मरुत् (मह्यम्) = मेरे लिये (यज्ञम्) = इस जीवन-यज्ञ को (ओहते) = वहन करते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ– विविध रूपों में कार्यों को करते हुए ये मरुत्- प्राणभेद हमारे जीवन यज्ञ का वहन - करते हैं ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो! तुम्ही संपूर्ण विद्या व त्यापासून उत्पन्न झालेले क्रियाकौशल्य प्रत्यक्ष करून इतरांनाही अवगत करून द्या. ॥ १० ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Travellers hitherwards, or travellers by various ways, or travellers over the interior ways, or travellers of open and successive ways, thus and by these names and descriptions they bring expansion to my yajna.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Men's duties are to seek all paths of Vidya and Dharma (knowledge and righteousness) etc.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men! my Yajna in the form of honour shown to the enlightened persons, association, donation or charity etc. is attained by me by various paths or with the cooperation of the persons following different paths. They are therefore addressed by those names Some follow a path which goes to all directions. Some tread upon path which goes to diverse directions, or even opposite directions; some are fond of having an underground path, and some follow another path of their choice. Let all co-operate with me when I invite them, even though they tread upon different paths.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men! you should have a clear and distinct experience of all sciences and their practical application and give them to others also.

    Foot Notes

    (आपथय:) समन्तादभिमुखः पन्था येषान्ते। = The path that goes to front direction. (यज्ञम् ) विद्वत्सत्कारादिकम् । यज -देव- पूजासङ्ग्तिकरणदानेषु = The verb denotes honour that is shown to all enlightened persons or, association and charity.

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