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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 52 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 52/ मन्त्र 9
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - मरुतः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    उ॒त स्म॒ ते परु॑ष्ण्या॒मूर्णा॑ वसत शु॒न्ध्यवः॑। उ॒त प॒व्या रथा॑ना॒मद्रिं॑ भिन्द॒न्त्योज॑सा ॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त । स्म॒ । ते । परु॑ष्ण्याम् । ऊर्णाः॑ । व॒स॒त॒ । शु॒न्ध्यवः॑ । उ॒त । प॒व्या । रथा॑नाम् । अद्रि॑म् । भि॒न्द॒न्ति॒ । ओज॑सा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत स्म ते परुष्ण्यामूर्णा वसत शुन्ध्यवः। उत पव्या रथानामद्रिं भिन्दन्त्योजसा ॥९॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत। स्म। ते। परुष्ण्याम्। ऊर्णाः। वसत। शुन्ध्यवः। उत। पव्या। रथानाम्। अद्रिम्। भिन्दन्ति। ओजसा ॥९॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 52; मन्त्र » 9
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 9; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! याः परुष्ण्यां शुन्ध्यवो रथानां पव्या इवौजसाऽद्रिं भिन्दन्ति उत वर्षन्ति तास्ते स्युः। उत स्मोर्णाः सन्तोऽत्र सत्कृता यूयं वसत ॥९॥

    पदार्थः

    (उत) अपि (स्म) एव (ते) (परुष्ण्याम्) पालनकर्त्र्याम् (ऊर्णाः) रक्षिताः (वसत) (शुन्ध्यवः) शोधिकाः (उत) (पव्या) रथचक्राणां रेखाः (रथानाम्) (अद्रिम्) मेघम् (भिन्दन्ति) (ओजसा) बलेन ॥९॥

    भावार्थः

    यथा मेघा वर्षन्तः पृथिवीं विदीर्णन्ति तथैव सत्पुरुषसङ्गोऽशुद्धिं छिनत्ति ॥९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जो (परुष्ण्याम्) पालन करनेवाली में (शुन्ध्यवः) शोधन करनेवाली (रथानाम्) वाहनों के (पव्या) रथों के चक्रों पहियों की लीकों के सदृश (ओजसा) बल से (अद्रिम्) मेघ को (भिन्दन्ति) तोड़ती हैं (उत) और वर्षाती हैं, वे (ते) तुम्हारे लिये हों (उत) और (स्म) निश्चित (ऊर्णाः) रक्षित हुए यहाँ सत्कार किये गये आप लोग (वसत) वसिये ॥९॥

    भावार्थ

    जैसे मेघ वर्षते हुए पृथिवी को विदीर्ण करते हैं, वैसे ही श्रेष्ठ पुरुषों का सङ्ग अशुद्धि का नाश करता है ॥९॥

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    विषय

    उनकी परुष्णी अर्थात् पालन नीति । शत्रुभेदन का उपदेश ।

    भावार्थ

    भा०- ( उत स्म ) और (ते) वे वीर पुरुष ( परुष्ण्याम् ) पालक साधनों से युक्त, तेजस्विनी, अति गहन राष्ट्र रक्षा या राजनीति में ( ऊर्णाः ) अच्छी प्रकार कवचों से अच्छादित होकर या युद्ध की विषम गति में (शुन्ध्युवः ) शुद्ध आचारवान् होकर ( वसत) रहें। ( उत ) और ( रथानां पव्या) रथों की चक्र-धारा के तुल्य महारथियों की वज्र शक्ति से वे ( ओजसा ) बल पराक्रम द्वारा ( अद्रिं भिन्दन्ति ) मेघ को सूर्य या विद्युत् के तुल्य पर्वतवत् अचल शत्रु को भी भेद दें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्द:- १, ४, ५, १५ विराडनुष्टुप् । २, ७, १० निचृदनुष्टुप् । ६ पंक्तिः । ३, ९, ११ विराडुष्णिक् । ८, १२, १३ अनुष्टुप् । १४ बृहती । १६ निचृद् बृहती । १७ बृहती ॥ सप्तदशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    परुष्णी में स्नान

    पदार्थ

    [१] (उत स्म) = और निश्चय से (ते) = वे प्राणसाधना करनेवाले मनुष्य (परुष्ण्याम्) = पालन व पूरण करनेवाली इस ज्ञान नदी में (शुन्ध्यवः) = अपने जीवन का शोधन करनेवाले, निष्णात बननेवाले (ऊर्णा:) = आच्छादक कवचों को (वसत) = धारण करते हैं 'ब्रह्म वर्म ममान्तरम्'। यह ज्ञानकवच उन्हें संसार की विषय-वासनाओं से आक्रान्त नहीं होने देता । [२] ऐसी स्थिति में ये (मरुत्) = प्राणसाधक पुरुष (ओजसा) = ओजस्विता के द्वारा (रथानां पव्या) = इन शरीर रथों की पवि, नेमि व चक्र से (अद्रिं भिन्दन्ति) = पर्वत तुल्य दृढ़ शत्रुओं को भी विदीर्ण कर देते हैं । अर्थात् प्रबल रोगों के भी विनाशक होते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना द्वारा ज्ञानाग्नि को दीप्त करके वह साधक परुष्णी [पालन व पूरण करनेवाली ज्ञान नदी] में स्नान करता है। इस स्नान से वह शुद्ध जीवनवाला बनता है। शरीर में ओजस्विता को धारण कराके प्रबल रोगों को भी विदीर्ण करनेवाला होता है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसे मेघ वृष्टी करून आपल्या पर्जन्याने पृथ्वीला विदीर्ण करतात तसा श्रेष्ठ पुरुषांचा संग अशुद्धीचा नाश करतो. ॥ ९ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    And they, the Maruts, leading lights and warriors, self-secure on the tortuous paths of existence, shining bright and pure, with their valour and wheels of the chariot ride the clouds and shatter the mountains.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The men's duties are further told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men! you may have such marks in the wheels of the chariot which protect you, being the purifiers and the cloud and rain down water. Being protected and honoured, may you dwell here well.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As the clouds while raining water, break the earth, so the association with noble persons dispels all impurity.

    Translator's Notes

    It is wrong on the part of Sayanacharya, Prof. Wilson, Griffith and others to take Parushni as the name of a particular river and to remark as Griffith has vented to do in his footnote "Parushni-one of the rivers of the Punjab, now. called the Ravi". Such a wild imagination is against the fundamental principles of the eternal Vedas which Shri Sayanacharya has so ably enunciated (earlier. Ed.) in his introduction of the commentary on the Rigveda. Such an inconsistency on the part of a great scholar is deplorable.

    Foot Notes

    (परुष्ण्याम् ) पालनकत्र्याम् ( क्रियापद ) | पु पालनपूरणयोः (जुहो० )। = Protectors. (ऊर्णाः) रक्षिता: । उर्णुत् आच्छादने (अदा०)। = Protected, guarded. (अद्रिम् ) मेघम् । अद्रिरिति मेघनाम (NG 1, 10)। = Cloud.

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