ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 75/ मन्त्र 3
आ नो॒ रत्ना॑नि॒ बिभ्र॑ता॒वश्वि॑ना॒ गच्छ॑तं यु॒वम्। रुद्रा॒ हिर॑ण्यवर्तनी जुषा॒णा वा॑जिनीवसू॒ माध्वी॒ मम॑ श्रुतं॒ हव॑म् ॥३॥
स्वर सहित पद पाठआ । नः॒ । रत्ना॑नि । बिभ्र॑तौ । अश्वि॑ना । गच्छ॑तम् । यु॒वम् । रुद्रा॑ । हिर॑ण्यऽवर्तनी॒ इति॒ हिर॑ण्यऽवर्तनी । जु॒षा॒णा । वा॒जि॒नी॒व॒सू॒ इति॑ वाजिनीऽवसू । माध्वी॒ इति॑ । मम॑ । श्रुत॑म् । हव॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ नो रत्नानि बिभ्रतावश्विना गच्छतं युवम्। रुद्रा हिरण्यवर्तनी जुषाणा वाजिनीवसू माध्वी मम श्रुतं हवम् ॥३॥
स्वर रहित पद पाठआ। नः। रत्नानि। बिभ्रतौ। अश्विना। गच्छतम्। युवम्। रुद्रा। हिरण्यवर्तनी इति हिरण्यऽवर्तनी। जुषाणा। वाजिनीवसू इति वाजिनीऽवसू। माध्वी इति। मम। श्रुतम्। हवम् ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 75; मन्त्र » 3
अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
विषय - दो अश्वी । विद्वान् जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ -
भा०-हे ( अश्विना ) अश्वों, इन्द्रियों और आशुगामी साधनों के स्वामी स्त्री पुरुषो ! (युवम् ) आप दोनों ( रत्नानि ) रमणीय सुन्दर गुणों और रत्नों को (बिभ्रतौ ) धारण करते हुए (नः आ गच्छतम् ) हमें प्राप्त होवो । ( रुद्रा ) दुष्टों को रुलाने वाले, पीड़ा को दूर करने वाले ( हिरण्य-वर्त्तनी ) हित रमणीय मार्ग से जाने वाले, ( वाजिनी-वसू ) ज्ञानयुक्त वाणी के निमित्त गुरु के अधीन व्रतपूर्वक बसने वाले आप दोनों (जुषाणा ) प्रेमपूर्वक सेवन करते हुए ( माध्वी ) मधुवत् ज्ञान के संग्रही होकर ( मम हवं ) मेरे ज्ञानोपदेश को ( श्रुतम् ) श्रवण करो ।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अवस्युरात्रेय ऋषि: ।। अश्विनौ देवते ॥ छन्द: – १, ३ पंक्ति: । २, ४, ६, ७, ८ निचृत्पंक्तिः । ५ स्वराट् पंक्तिः । ९ विराट् पंक्तिः ।। नवर्चं सुक्तम् ।।
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