ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 75/ मन्त्र 9
अभू॑दु॒षा रुश॑त्पशु॒राग्निर॑धाय्यृ॒त्वियः॑। अयो॑जि वां वृषण्वसू॒ रथो॑ दस्रा॒वम॑र्त्यो॒ माध्वी॒ मम॑ श्रुतं॒ हव॑म् ॥९॥
स्वर सहित पद पाठअभू॑त् । उ॒षा । रुश॑त्ऽपशुः । आ । अ॒ग्निः । अ॒धा॒यि॒ । ऋ॒त्वियः॑ । अयो॑जि । वा॒म् । वृ॒ष॒ण्व॒सू॒ इति॑ वृषण्ऽवसू । रथः॑ । द॒स्रौ॒ । अम॑र्त्यः । माध्वी॒ इति॑ । मम॑ । श्रुत॑म् । हव॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अभूदुषा रुशत्पशुराग्निरधाय्यृत्वियः। अयोजि वां वृषण्वसू रथो दस्रावमर्त्यो माध्वी मम श्रुतं हवम् ॥९॥
स्वर रहित पद पाठअभूत्। उषाः। रुशत्ऽपशुः। आ। अग्निः। अधायि। ऋत्वियः। अयोजि। वाम्। वृषण्वसू इति वृषण्ऽवसू। रथः। दस्रौ। अमर्त्यः। माध्वी इति। मम। श्रुतम्। हवम् ॥९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 75; मन्त्र » 9
अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 16; मन्त्र » 4
अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 16; मन्त्र » 4
विषय - दो अश्वी । विद्वान् जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ -
भा०- गृहस्थ-रथ । ( उषा रुषत् पशुः अभूत् ) जिस प्रकार उषा चमकते जगत् को रूप दिखाने वाले किरणों से युक्त होती है और ( अग्निः अधायि ) विद्वानों द्वारा अग्नि आधान किया जाता है उसी प्रकार जब ( उषा ) कान्तिमती, कामना करने वाली स्त्री, ( रुषत्-पशुः ) दीप्ति युक्तः तेजस्वी, उत्तम पशुसम्पदा से युक्त, अथवा उत्तम अंगों वाली होती है और (अग्निः) अग्नि के समान तेजस्वी, अग्रणी नायक पुरुष ( रुषत् पशुः ) तेजस्वी अंगों वाला हो तब वह ( ऋत्वियः ) ऋतु काल में गमन करता हुआ ( अधायि ) गर्भ रूप से स्थित हो । हे ( वृषण्वसू ) वीर्य सेचन में समर्थ पुरुष एवं उसके अधीन रहने वाली स्त्री ( वां ) तुम दोनों का (रथः) सुखपूर्वक रमण अर्थात् उपभोग करने योग्य गृहस्थ रूप रथ ( अमर्त्यः ) कभी न नाश होने योग्य रूप से ( अयोजि ) रथवत् ही जुड़े, हे ( दस्रौ ) दर्शनीय, हे कर्म करने वाले, हे परस्पर दुःख नाशक आप दोनों (माध्वी मम हवं श्रुतम् ) उत्तम अन्न, मधुवत् ज्ञान के संग्रही होकर मेरे उपदेश श्रवण करो। इति षोडशो वर्गः ॥
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अवस्युरात्रेय ऋषि: ।। अश्विनौ देवते ॥ छन्द: – १, ३ पंक्ति: । २, ४, ६, ७, ८ निचृत्पंक्तिः । ५ स्वराट् पंक्तिः । ९ विराट् पंक्तिः ।। नवर्चं सुक्तम् ।।
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