ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 29/ मन्त्र 2
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
आ यस्मि॒न्हस्ते॒ नर्या॑ मिमि॒क्षुरा रथे॑ हिर॒ण्यये॑ रथे॒ष्ठाः। आ र॒श्मयो॒ गभ॑स्त्योः स्थू॒रयो॒राध्व॒न्नश्वा॑सो॒ वृष॑णो युजा॒नाः ॥२॥
स्वर सहित पद पाठआ । यस्मि॑न् । हस्ते॑ । नर्याः॑ । मि॒मि॒क्षुः । आ । रथे॑ । हि॒र॒ण्यये॑ । र॒थे॒ऽस्थाः । आ । र॒श्मयः॑ । गभ॑स्त्योः । स्थू॒रयोः॑ । आ । अध्व॑न् । अश्वा॑सः । वृष॑णः । यु॒जा॒नाः ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ यस्मिन्हस्ते नर्या मिमिक्षुरा रथे हिरण्यये रथेष्ठाः। आ रश्मयो गभस्त्योः स्थूरयोराध्वन्नश्वासो वृषणो युजानाः ॥२॥
स्वर रहित पद पाठआ। यस्मिन्। हस्ते। नर्याः। मिमिक्षुः। आ। रथे। हिरण्यये। रथेऽस्थाः। आ। रश्मयः। गभस्त्योः। स्थूरयोः। आ। अध्वन्। अश्वासः। वृषणः। युजानाः ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 29; मन्त्र » 2
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 1; मन्त्र » 2
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 1; मन्त्र » 2
विषय - प्रधान पुरुष, इन्द्र की योग्यता ।
भावार्थ -
( यस्मिन् हस्ते ) जिस प्रबल हाथ के नीचे ( नर्याः ) मनुष्यों के हितकारी नायक जन ( आ मिमिक्षुः ) सब ओर से एकत्र होते हैं और (यस्मिन् हिरण्यये रथे) जिस हितकारी, रमणीय, सबको अच्छा लगने वाले ‘रथ’ अर्थात् महारथी पुरुष के अधीन ( रथे-ष्ठा: ) रथ पर विराजने वाले अन्य महारथी (आ मिमिक्षुः) सम्बन्धित रहकर राष्ट्र की वृद्धि करते हैं और जिन ( स्थूरयोः ) विशाल ( गभस्त्योः ) बाहुओं में ( रश्मयः ) रासें, बागडोर (आ मिमिक्षु:) मिलकर रहती हैं । और (अध्वन् ) जिस मार्ग में ( अश्वासः ) प्रबल अश्वों के समान ( वृषणः ) बलवान् पुरुष भी ( युजाना: ) नियुक्त होकर (आ मिमिक्षु: ) मिलकर राष्ट्र की वृद्धि करते हैं वही प्रधान पुरुष सबका ( इन्द्रः) स्वामी वा राजा होने योग्य है ।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ।। छन्दः–१, ३, ५ निचृत्त्रिष्टुप् । ४ त्रिष्टुप् । २ भुरिक् पंक्ति: ६ ब्राह्मी उष्णिक्॥
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