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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 42 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 42/ मन्त्र 3
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    यदी॑ सु॒तेभि॒रिन्दु॑भिः॒ सोमे॑भिः प्रति॒भूष॑थ। वेदा॒ विश्व॑स्य॒ मेधि॑रो धृ॒षत्तन्त॒मिदेष॑ते ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यदि॑ । सु॒तेभिः॑ । इन्दु॑ऽभिः । सोमे॑भिः । प्र॒ति॒ऽभूष॑थ । वेद॑ । विश्व॑स्य । मेधि॑रः । धृ॒षत् । तम्ऽत॑म् । इत् । आ । ई॒ष॒ते॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदी सुतेभिरिन्दुभिः सोमेभिः प्रतिभूषथ। वेदा विश्वस्य मेधिरो धृषत्तन्तमिदेषते ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यदि। सुतेभिः। इन्दुऽभिः। सोमेभिः। प्रतिऽभूषथ। वेद। विश्वस्य। मेधिरः। धृषत्। तम्ऽतम्। इत्। आ। ईषते ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 42; मन्त्र » 3
    अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 14; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    ( यदि ) यदि आप लोग ( सुतेभिः) उत्तम पदों पर अभिषिक्त ( इन्दुभिः ) दयार्द्र, तेजस्वी ( सोमेभिः) उत्तम शासकों, ऐश्वर्यों वा गुणों सहित उस राजा को ( प्रति भूषथ ) सुभूषित करे तो वह ( मेधिरः ) शत्रुओं का नाश करने में समर्थ, बुद्धिमान्, तथा अन्नादि सम्पन्न पुरुष ( विश्वस्य ) समस्त राष्ट्र को ( वेद ) जाने, और प्राप्त करे । वह ( धृषत् ) शत्रुओं का पराजय करने हारा (तम्-तम् इत् ) आपके दिये उस २ ऐश्वर्यादि पदार्थ को ( आ ईषते ) आदरपूर्वक प्राप्त करे ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। इन्द्रो देवता ॥ छन्दः – १ स्वराडुष्णिक् । २ निचृदनुष्टुप् । ३ अनुष्टुप् । ४ भुरिगनुष्टुप् ।। चतुऋर्चं सूक्तम् ॥ ।

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