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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 52 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 52/ मन्त्र 15
    ऋषिः - ऋजिश्वाः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ये के च॒ ज्मा म॒हिनो॒ अहि॑माया दि॒वो ज॑ज्ञि॒रे अ॒पां स॒धस्थे॑। ते अ॒स्मभ्य॑मि॒षये॒ विश्व॒मायुः॒ क्षप॑ उ॒स्रा व॑रिवस्यन्तु दे॒वाः ॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । के । च॒ । ज्मा । म॒हिनः॑ । अहि॑ऽमायाः । दि॒वः । ज॒ज्ञि॒रे । अ॒पाम् । स॒धऽस्थे॑ । ते । अ॒स्मभ्य॑म् । इ॒षये॑ । विश्व॑म् । आयुः॑ । क्षपः॑ । उ॒स्राः । व॒रि॒व॒स्य॒न्तु॒ । दे॒वाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये के च ज्मा महिनो अहिमाया दिवो जज्ञिरे अपां सधस्थे। ते अस्मभ्यमिषये विश्वमायुः क्षप उस्रा वरिवस्यन्तु देवाः ॥१५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये। के। च। ज्मा। महिनः। अहिऽमायाः। दिवः। जज्ञिरे। अपाम्। सधऽस्थे। ते। अस्मभ्यम्। इषये। विश्वम्। आयुः। क्षपः। उस्राः। वरिवस्यन्तु। देवाः ॥१५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 52; मन्त्र » 15
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 16; मन्त्र » 5

    भावार्थ -
    ( ये के च ) और जो कोई ( महिनः ) गुणों में महान्, ( ज्मा ) इस भूमि पर ( दिवः ) सूर्य के प्रकाश से तथा (अपां सधस्थे अहि-मायाः ) जलों के एकत्र विद्यमान रहने के स्थान अन्तरिक्ष में विद्यमान मेघ के समान आचरण करने वाले, उदार, निष्पक्षपात होकर ज्ञानों, सुखों की वर्षा करने वाले वा (अपां सधस्थे ) आप्त विद्वजनों के साथ सभा आदि स्थानों में ( दिवः ) ज्ञान के प्रकाश से ( अहि-मायाः ) अन्यों को पराजित करने वाली, सर्वातिशायी बुद्धि वाले ( जज्ञिरे ) प्रकट हों । ( ते देवाः ) वे ज्ञानादि देने में कुशल ज्ञानी पुरुष ( क्षपः उस्राः ) रात दिन, (इषये ) इष्ट सुख लाभ के लिये ( अस्मभ्यम् ) हमारे लिये ( आयु: ) समस्त आयु (वरिवस्यन्तु ) दें, और जन समाज की सेवा किया करें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋजिश्वा ऋषिः ।। विश्वेदेवा देवताः ।। छन्दः – १, ४, १५, १६ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ३, ६, १३, १७ त्रिष्टुप् । ५ भुरिक् पंक्ति: । ७, ८, ११ गायत्री । ९ , १०, १२ निचृद्गायत्री । १४ विराड् जगती ॥

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