ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 52/ मन्त्र 16
अग्नी॑पर्जन्या॒वव॑तं॒ धियं॑ मे॒ऽस्मिन्हवे॑ सुहवा सुष्टु॒तिं नः॑। इळा॑म॒न्यो ज॒नय॒द्गर्भ॑म॒न्यः प्र॒जाव॑ती॒रिष॒ आ ध॑त्तम॒स्मे ॥१६॥
स्वर सहित पद पाठअग्नी॑पर्जन्यौ । अव॑तम् । धिय॑म् । मे॒ । अ॒स्मिन् । हवे॑ । सु॒ऽह॒वा॒ । सु॒ऽस्तु॒तिम् । नः॒ । इळा॑म् । अ॒न्यः । ज॒नय॑त् । गर्भ॑म् । अ॒न्यः । प्र॒जाऽव॑तीः । इषः॑ । आ । ध॒त्त॒म् । अ॒स्मे इति॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्नीपर्जन्याववतं धियं मेऽस्मिन्हवे सुहवा सुष्टुतिं नः। इळामन्यो जनयद्गर्भमन्यः प्रजावतीरिष आ धत्तमस्मे ॥१६॥
स्वर रहित पद पाठअग्नीपर्जन्यौ। अवतम्। धियम्। मे। अस्मिन्। हवे। सुऽहवा। सुऽस्तुतिम्। नः। इळाम्। अन्यः। जनयत्। गर्भम्। अन्यः। प्रजाऽवतीः। इषः। आ। धत्तम्। अस्मे इति ॥१६॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 52; मन्त्र » 16
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 16; मन्त्र » 6
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 16; मन्त्र » 6
विषय - missing
भावार्थ -
( अग्नि-पर्जन्या ) अग्नि के समान ज्ञानप्रकाश युक्त और प्रतापी और मेघ के समान प्रजाओं पर सुखों की वर्षा करने वाला, वा शत्रुओं को विजय और प्रजा को तृप्त, प्रसन्न करने वाला, ये दोनों प्रकार के पुरुष ( सु-हवा ) उत्तम दान योग्य ज्ञान और धन से युक्त वा प्रजाओं द्वारा सुखपूर्वक बुलाने, निसंकोच कहने सुनने योग्य होकर ( मे धियं अवतम् ) मेरी बुद्धि और सदाचार की रक्षा करें । और ( अस्मिन् हवे ) इस दान-प्रतिदान के यज्ञ में ( नः सु-स्तुतिम् अवताम् ) हमारी उत्तम स्तुति का श्रवण करें । उन दोनों से ( अन्य ) एक ( इडाम् जनयत् ) मेघ के समान भूमि को बीज वपन योग्य बनाकर अन्न उत्पन्न करता है, उसी प्रकार ( अन्यः ) एक तो ( इलाम् जनयत् ) शिष्य के प्रति उपदेशयोग्य वाणी को ही प्रकट करे और ( अन्यः गर्भम् जनयत् ) सूर्य जिस प्रकार अन्तरिक्ष में जलों को गर्भित करता वा पृथिवी पर जाठर रूप में अन्न को पचाकर, वीर्य बना कर प्रथम पुरुष में, फिर स्त्रीयोनि में गर्भ को उत्पन्न करता है उसी प्रकार ( अन्यः ) दूसरा विद्वान् जन (गर्भम् ) विद्यार्थी को माता के समान विद्या के गर्भ में ग्रहण करके पुनः शिष्य को पुत्रवत् वेदविद्या में उत्पन्न करे। जिस प्रकार सूर्य और मेघ दोनों ( प्रजावतीः इषः धत्तम् ) प्रजा से युक्त अन्न सम्पदा को देते और पुष्ट करते हैं उसी प्रकार गुरु, आचार्य, भी ( प्रजावती: इषः ) उत्तम सन्ततियुक्त कामनाओं को धारण करें अग्नि मेघवत् अग्रणी सेना नायक और राजा दोनों प्रजा से युक्त सेनाओं को धारण करें ।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋजिश्वा ऋषिः ।। विश्वेदेवा देवताः ।। छन्दः – १, ४, १५, १६ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ३, ६, १३, १७ त्रिष्टुप् । ५ भुरिक् पंक्ति: । ७, ८, ११ गायत्री । ९ , १०, १२ निचृद्गायत्री । १४ विराड् जगती ॥
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