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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 70 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 70/ मन्त्र 5
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - द्यावापृथिव्यौ छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    मधु॑ नो॒ द्यावा॑पृथि॒वी मि॑मिक्षतां मधु॒श्चुता॑ मधु॒दुघे॒ मधु॑व्रते। दधा॑ने य॒ज्ञं द्रवि॑णं च दे॒वता॒ महि॒ श्रवो॒ वाज॑म॒स्मे सु॒वीर्य॑म् ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मधु॑ । नः॒ । द्यावा॑पृथि॒वी इति॑ । मि॒मि॒क्ष॒ता॒म् । म॒धु॒ऽश्चुता॑ । म॒धु॒दुघे॒ इति॑ म॒धु॒ऽदुघे॑ । मधु॑व्रते॒ इति॒ मधु॑ऽव्रते । दधा॑ने॒ इति॑ । य॒ज्ञम् । द्रवि॑णम् । च॒ । दे॒वता॑ । महि॑ । श्रवः॑ । वाज॑म् । अ॒स्मे इति॑ । सु॒ऽवीर्य॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मधु नो द्यावापृथिवी मिमिक्षतां मधुश्चुता मधुदुघे मधुव्रते। दधाने यज्ञं द्रविणं च देवता महि श्रवो वाजमस्मे सुवीर्यम् ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मधु। नः। द्यावापृथिवी इति। मिमिक्षताम्। मधुऽश्चुता। मधुदुघे इति मधुऽदुघे। मधुव्रते इति मधुऽव्रते। दधाने इति। यज्ञम्। द्रविणम्। च। देवता। महि। श्रवः। वाजम्। अस्मे इति। सुऽवीर्यम् ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 70; मन्त्र » 5
    अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 14; मन्त्र » 5

    भावार्थ -
    ( द्यावापृथिवी ) सूर्य और भूमि दोनों जिस प्रकार ( मधुमिमिक्षतः ) अन्न और जल सब पर वर्षाते हैं उसी प्रकार स्त्री-पुरुष, वर-वधू दोनों माता पिता होकर ( नः ) हमें ( मधु मिमिक्षताम् ) अन्न प्रचुर मात्रा में दें । वे दोनों ( मधु-श्चुता ) मधुर पदार्थों के देने वाले, (मधु-दुघे ) मधुर पदार्थों को दोहन करने वाले, (मधु-व्रते ) मधुर फलोत्पादक कर्म करने वाले, हों । वे दोनों (अस्मे ) हमें ( महि ) बड़ा ( सु-वीर्यम् ) उत्तम बलप्रद ( वाजं श्रवः ) बल, अन्न और ज्ञान और ( द्रविणं यज्ञम् च दधाने ) धनैश्वर्य और सत्संग को धारण करने वाले होकर ( मधु मिमिक्षताम् ) मधुर अन्न प्रदान करें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। द्यावापृथिव्यौ देवते ॥ छन्दः–१, ५ निचृज्जगती । २, ३, ६ जगती ॥ षडृचं सूक्तम् ॥

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