ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 35/ मन्त्र 1
शं न॑ इन्द्रा॒ग्नी भ॑वता॒मवो॑भिः॒ शं न॒ इन्द्रा॒वरु॑णा रा॒तह॑व्या। शमिन्द्रा॒सोमा॑ सुवि॒ताय॒ शं योः शं न॒ इन्द्रा॑पू॒षणा॒ वाज॑सातौ ॥१॥
स्वर सहित पद पाठशम् । नः॒ । इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑ । भ॒व॒ता॒म् । अवः॑ऽभिः । शम् । नः॒ । इन्द्रा॒वरु॑णा । रा॒तऽह॑व्या । शम् । इन्द्रा॒सोमा॑ । सु॒वि॒ताय॑ । शम् । योः । शम् । नः॒ । इन्द्रा॑पू॒षणा । वाज॑ऽसातौ ॥
स्वर रहित मन्त्र
शं न इन्द्राग्नी भवतामवोभिः शं न इन्द्रावरुणा रातहव्या। शमिन्द्रासोमा सुविताय शं योः शं न इन्द्रापूषणा वाजसातौ ॥१॥
स्वर रहित पद पाठशम्। नः। इन्द्राग्नी इति। भवताम्। अवःऽभिः। शम्। नः। इन्द्रावरुणा। रातऽहव्या। शम्। इन्द्रासोमा। सुविताय। शम्। योः। शम्। नः। इन्द्रापूषणा। वाजऽसातौ ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 35; मन्त्र » 1
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 28; मन्त्र » 1
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 28; मन्त्र » 1
विषय - शान्तिसूक्त, समस्त भौतिक तत्वों से शान्ति प्राप्त करने की प्रार्थना ।
भावार्थ -
( वाजसातौ ) ऐश्वर्य प्राप्त हो जाने पर (इन्द्राग्नी) विद्युत् और अग्नि (अवोभिः ) अन्नों और रक्षा साधनों द्वारा (नः शं भवताम् ) हमें शान्तिदायक हों । इन्द्र राजा, और ऐश्वर्यवान् अग्निवत् तेजस्वी दोनों वर्ग तृप्तिदायक अन्न, रक्षासाधन, सैन्य, और ज्ञानों से हमें सुख शान्तिदायक हों । ( रात-हव्या ) ग्रहण करने और देने योग्य जल अन्नादि पदार्थों को प्राप्त करने वाले ( इन्द्रा वरुणा ) विद्युत् और बल, तथा सेनापति और राजा दोनों (नः शं) हमें शान्तिदायक हों। ( इन्द्रासोमा शम्) इन्द्र आचार्य, सोम शिष्य गण, और विद्युत् ओषधिगण, ( शम् ) — हमें शान्तिदायक हों । वे दोनों ही ( सुविताय ) सुखमय जीवन और ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिये भी शान्तिदायक और दुःख दूर करने वाले हों । (इन्द्रा-पूषणा) विद्युत् और वायु दोनों भी (नः शं) हमें शान्तिदायक हों ।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वसिष्ठ ऋषि:॥ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः– १, २, ३, ४, ५, ११, १२ त्रिष्टुप्। ६, ८, १०, १५ निचृत्त्रिष्टुप्। ७, ९ विराट् त्रिष्टुप्। १३, १४ भुरिक् पंक्तिः॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥
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