ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 55/ मन्त्र 1
अ॒मी॒व॒हा वा॑स्तोष्पते॒ विश्वा॑ रू॒पाण्या॑वि॒शन्। सखा॑ सु॒शेव॑ एधि नः ॥१॥
स्वर सहित पद पाठअ॒मी॒व॒ऽहा । वा॒स्तोः॒ । प॒ते॒ । विश्वा॑ । रू॒पाणि॑ । आ॒ऽवि॒शन् । सखा॑ । सु॒ऽशेवः॑ । ए॒धि॒ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अमीवहा वास्तोष्पते विश्वा रूपाण्याविशन्। सखा सुशेव एधि नः ॥१॥
स्वर रहित पद पाठअमीवऽहा। वास्तोः। पते। विश्वा। रूपाणि। आऽविशन्। सखा। सुऽशेवः। एधि। नः ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 55; मन्त्र » 1
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 22; मन्त्र » 1
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 22; मन्त्र » 1
विषय - गृहपति, राष्ट्रपति, देहपति, वास्तोष्पति ।
भावार्थ -
हे (वास्तोः पते) गृह, देह और राष्ट्र के पालक प्रभो ! गृहपते ! राजन् ! तेरे अधीन (विश्वारूपाणि) सब प्रकार के नाना रूप अर्थात् जीवगण बसते हैं । तू ( अमीव-हा ) सब प्रकार के रोगों, कष्टों का नाशक और ( सु-शेवः ) उत्तम सुखदायक ( नः ) हमारा ( सखा एधि ) मित्र होकर रह ।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वसिष्ठ ऋषिः ॥ १ वास्तोष्पतिः । २—८ इन्द्रो देवता॥ छन्दः —१ निचृद्गायत्री। २,३,४ बृहती। ५, ७ अनुष्टुप्। ६, ८ निचृदनुष्टुप् । अष्टर्चं सूक्तम् ॥
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