ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 56/ मन्त्र 1
क ईं॒ व्य॑क्ता॒ नरः॒ सनी॑ळा रु॒द्रस्य॒ मर्या॒ अधा॒ स्वश्वाः॑ ॥१॥
स्वर सहित पद पाठके । ई॒म् । विऽअ॑क्ताः । नरः॑ । सऽनी॑ळाः । रु॒द्रस्य॑ । मर्याः॑ । अध॑ । सु॒ऽअश्वाः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
क ईं व्यक्ता नरः सनीळा रुद्रस्य मर्या अधा स्वश्वाः ॥१॥
स्वर रहित पद पाठके। ईम्। विऽअक्ताः। नरः। सऽनीळाः। रुद्रस्य। मर्याः। अध। सुऽअश्वाः ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 56; मन्त्र » 1
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
विषय - रुद्र सेनापति के वीरजन। आचार्य के जितेन्द्रिय शिष्यों का वर्णन। उनके कर्त्तव्य।
भावार्थ -
( ईम् ) सब प्रकार से (वि-अक्ताः ) विशेष रूप से तेजस्वी, कान्तियुक्त, कमनीय गुणों से सम्पन्न, ( सनीडा: ) एक ही समान स्थान में रहने वाले, ( रुद्रस्य ) दुःखों, कष्टों को दूर करने वाले, दुष्टों के रुलाने वाले, प्रभु, परमेश्वर, विद्योपदेष्टा आचार्य के ( के मर्याः ) कौन विशेष मनुष्य ( नरः ) उत्तम नायक और ( सु-अश्वाः ) उत्तम अश्वों वाले वा जितेन्द्रिय हैं । (२) रुद्र, सेनापति के नायक विशेष कान्तियुक्त, (स-नीडाः) नीले तुर्रे वाले, ( मर्याः ) शत्रु को मारने में समर्थ, उत्तम घुड़सवार सब ओर रहें । ( ३ ) रुद्र परमेश्वर के ( नरः ) जीव ( स-नीडा: ) देह सहित, मरणधर्मा, उत्तम इन्द्रियों से सम्पन्न हैं ।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वसिष्ठ ऋषिः ।। मरुतो देवताः ॥ छन्दः -१ आर्ची गायत्री । २, ६, ७,९ भुरिगार्ची गायत्रीं । ३, ४, ५ प्राजापत्या बृहती । ८, १० आर्च्युष्णिक् । ११ निचृदार्च्युष्णिक् १२, १३, १५, १८, १९, २१ निचृत्त्रिष्टुप् । १७, २० त्रिष्टुप् । २२, २३, २५ विराट् त्रिष्टुप् । २४ पंक्तिः । १४, १६ स्वराट् पंक्तिः ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
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