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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 74 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 74/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृद्बृहती स्वरः - मध्यमः

    आ या॑त॒मुप॑ भूषतं॒ मध्व॑: पिबतमश्विना । दु॒ग्धं पयो॑ वृषणा जेन्यावसू॒ मा नो॑ मर्धिष्ट॒मा ग॑तम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । या॒त॒म् । उप॑ । भू॒ष॒त॒म् । मध्वः॑ । पि॒ब॒त॒म् । अ॒श्वि॒ना॒ । दु॒ग्धम् । पयः॑ । मा । नः॒ । म॒र्धि॒ष्ट॒म् । आ । ग॒त॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ यातमुप भूषतं मध्व: पिबतमश्विना । दुग्धं पयो वृषणा जेन्यावसू मा नो मर्धिष्टमा गतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । यातम् । उप । भूषतम् । मध्वः । पिबतम् । अश्विना । दुग्धम् । पयः । मा । नः । मर्धिष्टम् । आ । गतम् ॥ ७.७४.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 74; मन्त्र » 3
    अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 21; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    हे ( अश्विना ) जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषो ! हे उत्तम नायको ! हे ( जेन्यावसू ) बसने वाले अन्य सब प्रजा वर्गों, गृहस्थों और ऐश्वर्यों, समीप बसने वाले शिष्यों पर विजय करने वाले, उन सब से उत्कृष्ट आप लोग (आयातम् ) आदर पूर्वक आइये । ( उप भूषतम् ) समीप होइये, विराजिये ( मध्वः पिबतं ) गुरु-गृह में मधुमय ज्ञानरस, वेद को, ( दुग्धं पयः ) दुहे हुए पुष्टिकारक दूध के समान (पिबतम् ) पान करिये । हे ( वृषणा ) मेघ के समान ज्ञान-सुखों की वर्षा करने वालो, हे बलवान् पुरुषो ! ( नः मा मर्धिष्टम् ) हमारा नाश न करो, हमें मत मारो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वसिष्ठ ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः – १, ३ निचृद् बृहती । २, ४, ६ आर्षी भुरिग् बृहती । ५ आर्षी बृहती ॥ षडृचं सूक्तम् ॥

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