ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 38/ मन्त्र 9
ए॒वा वा॑मह्व ऊ॒तये॒ यथाहु॑वन्त॒ मेधि॑राः । इन्द्रा॑ग्नी॒ सोम॑पीतये ॥
स्वर सहित पद पाठए॒व । वा॒म् । अ॒ह्वे॒ । ऊ॒तये॑ । यथा॑ । अहु॑वन्त । मेधि॑राः । इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । सोम॑ऽपीतये ॥
स्वर रहित मन्त्र
एवा वामह्व ऊतये यथाहुवन्त मेधिराः । इन्द्राग्नी सोमपीतये ॥
स्वर रहित पद पाठएव । वाम् । अह्वे । ऊतये । यथा । अहुवन्त । मेधिराः । इन्द्राग्नी इति । सोमऽपीतये ॥ ८.३८.९
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 38; मन्त्र » 9
अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
विषय - उनके तुल्य परस्पर सहायकों और विद्वानों के कर्त्तव्य।
भावार्थ -
( यथा ) जिस प्रकार ( मेधिरा ) विद्वान् मतिमान्, मेधावी पुरुष ( वाम् ) आप दोनों को अपने पास (सोम-पीतये) ज्ञान ग्रहण और वीर्य पालन के लिये ( आहुवन्त ) बुलाते रहें। हे ( इन्द्राग्नी ) सूर्याग्निवत् तेजस्वी जनो ! ( एवा ) उसी प्रकार मैं भी ( वाम् ) आप दोनों को ( सोम-पीतये ) ऐश्वर्य और पुत्र प्रजादि के उपभोग और पालन के लिये बुलाता हूं।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - श्यावाश्व ऋषिः॥ इन्द्राग्नी देवते॥ छन्दः १, २, ४, ६, ९ गायत्री। ३, ५, ७, १० निचृद्गायत्री। ८ विराड् गायत्री॥ दशर्चं सूक्तम्॥
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