Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 91 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 91/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अपालात्रेयी देवता - इन्द्र: छन्दः - स्वराडार्चीपङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    क॒न्या॒३॒॑ वार॑वाय॒ती सोम॒मपि॑ स्रु॒तावि॑दत् । अस्तं॒ भर॑न्त्यब्रवी॒दिन्द्रा॑य सुनवै त्वा श॒क्राय॑ सुनवै त्वा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क॒न्या॑ । वाः । आ॒व॒ऽय॒ती । सोम॑म् । अपि॑ । स्रु॒ता । अ॒वि॒द॒त् । अस्त॑म् । भर॑न्ती । अ॒ब्र॒वी॒त् । इन्द्रा॑य । सु॒न॒वै॒ । त्वा॒ । श॒क्राय॑ । सु॒न॒वै॒ । त्वा॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कन्या३ वारवायती सोममपि स्रुताविदत् । अस्तं भरन्त्यब्रवीदिन्द्राय सुनवै त्वा शक्राय सुनवै त्वा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कन्या । वाः । आवऽयती । सोमम् । अपि । स्रुता । अविदत् । अस्तम् । भरन्ती । अब्रवीत् । इन्द्राय । सुनवै । त्वा । शक्राय । सुनवै । त्वा ॥ ८.९१.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 91; मन्त्र » 1
    अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 14; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    जिस प्रकार ( त्रता ) बहती ( अवयती ) नीचे की ओर जाती ( वाः ) जल धारा ( सोमम् अपि विदत् ) ओषधि वर्ग को प्राप्त होती है उसी प्रकार ( वाः ) वरण करने वाली वरवर्णिनी, ( अवयती कन्या ) समझती बूझती हुई कन्या ( सोमम् ) पुत्रोत्पादन में समर्थ वीर्यवान् विद्यावत स्नातक पुरुष को ( स्रुता ) उस के प्रति प्रेमाकृष्ट होकर ( अपि विदत् ) पति रूप से प्राप्त करे। उस से विवाह करे। वह (अस्तं भरन्ती) गृह-आश्रम को भरण या धारण करती हुई ( अब्रवीत् ) कहे कि मैं ( इन्द्राय ) ऐश्वर्यवान्, तेजस्वी स्वामी होने के लिये ( त्वा सुनवै ) तेरा आदर करती हूं, अथवा तुझे ही पुत्र रूप से उत्पन्न करने के लिये ( त्वा ) तुझे वरण करती हूं। इसी प्रकार ( शक्राय ) शक्तिशाली स्वामी प्राप्त करने के लिये ( त्वा सुनवै ), तेरा सवन, पूजन करती हूं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अपालात्रेयी ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१ आर्ची स्वराट् पंक्तिः। २ पंक्ति:। ३ निचृदनुष्टुप्। ४ अनुष्टुप्। ५, ६ विराडनुष्टुप्। ७ पादनिचृदनुष्टुप्॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top