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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 94 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 94/ मन्त्र 9
    ऋषिः - बिन्दुः पूतदक्षो वा देवता - मरूतः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    आ ये विश्वा॒ पार्थि॑वानि प॒प्रथ॑न्रोच॒ना दि॒वः । म॒रुत॒: सोम॑पीतये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । ये । विश्वा॑ । पार्थि॑वानि । प॒प्रथ॑न् । रो॒च॒ना । दि॒वः । म॒रुतः॑ । सोम॑ऽपीतये ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ ये विश्वा पार्थिवानि पप्रथन्रोचना दिवः । मरुत: सोमपीतये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । ये । विश्वा । पार्थिवानि । पप्रथन् । रोचना । दिवः । मरुतः । सोमऽपीतये ॥ ८.९४.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 94; मन्त्र » 9
    अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 29; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    ( ये मरुतः ) जो बलवान् मनुष्य ( सोम-पीतये ) ऐश्वर्य के पालन और प्राप्ति के लिये ( दिवः ) आकाश या भूमि के ( विश्वा ) समस्त ( पार्थिवानि रोचना ) पृथिवी पर विद्यमान रुचिकर पदार्थों को ( पप्रथन् ) विस्तारित करते हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - बिन्दुः पूतदक्षो वा ऋषिः॥ मरुतो देवता॥ छन्दः—१, २, ८ विराड् गायत्री। ३, ५, ७, ९ गायत्री। ४, ६, १०—१२ निचृद् गायत्री॥

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