ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 101/ मन्त्र 1
ऋषिः - अन्धीगुः श्यावाश्विः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
पु॒रोजि॑ती वो॒ अन्ध॑सः सु॒ताय॑ मादयि॒त्नवे॑ । अप॒ श्वानं॑ श्नथिष्टन॒ सखा॑यो दीर्घजि॒ह्व्य॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठपु॒रःऽजि॑ती । वः॒ । अन्ध॑सः । सु॒ताय॑ । मा॒द॒यि॒त्नवे॑ । अप॑ । श्वान॑म् । श्न॒थि॒ष्ट॒न॒ । सखा॑यः । दी॒र्घ॒ऽजि॒ह्व्य॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
पुरोजिती वो अन्धसः सुताय मादयित्नवे । अप श्वानं श्नथिष्टन सखायो दीर्घजिह्व्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठपुरःऽजिती । वः । अन्धसः । सुताय । मादयित्नवे । अप । श्वानम् । श्नथिष्टन । सखायः । दीर्घऽजिह्व्यम् ॥ ९.१०१.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 101; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 1; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 1; मन्त्र » 1
विषय - पवमान सोम। आत्मा की उन्नति के लिये त्याज्य लोभी पुरुष का त्याग और तृष्णालु चित्त का दमन।
भावार्थ -
हे (सखायः) मित्रजनो ! (वः) आप लोग अपने में से (पुरः-जीती) शत्रु के नगरों, गढ़ों को जीतने वाले (अन्धसः) प्राण को धारण करने वाले आत्मा के तुल्य वीर पुरुष के (मादयित्नवे) सब को प्रसन्न करने वाले (सुताय) अभिषेक के लिये, (दीर्घजिह्वयम्) लम्बी लम्बी बातें करने वाले (श्वानम्) कुत्ते के समान केवल पेट भरने वाले लोभी जन को (अप श्नथिष्टन) दूर करो। (२) इसी प्रकार पुर-देह पर विजय करने वाले आत्मा के हर्षप्रद (सुताय) परम रस आत्मानन्द को प्राप्त करने के लिये लम्बी जीभ वाले कुत्ते के तुल्य लोभपर, तृष्णालु चित्त का दमन करो।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋषिः–१-३ अन्धीगुः श्यावाश्विः। ४—६ ययातिर्नाहुषः। ७-९ नहुषो मानवः। १०-१२ मनुः सांवरणः। १३–१६ प्रजापतिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, ११—१४ निचृदनुष्टुप्। ४, ५, ८, १५, १६ अनुष्टुप्। १० पादनिचृदनुष्टुप्। २ निचृद् गायत्री। ३ विराड् गायत्री॥ षोडशर्चं सूक्तम्॥
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