ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 14/ मन्त्र 7
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
अ॒भि क्षिप॒: सम॑ग्मत म॒र्जय॑न्तीरि॒षस्पति॑म् । पृ॒ष्ठा गृ॑भ्णत वा॒जिन॑: ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भि । क्षिपः॑ । सम् । अ॒ग्म॒त॒ । म॒र्जय॑न्तीः । इ॒षः । पति॑म् । पृ॒ष्ठा । गृ॒भ्ण॒त॒ । वा॒जिनः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अभि क्षिप: समग्मत मर्जयन्तीरिषस्पतिम् । पृष्ठा गृभ्णत वाजिन: ॥
स्वर रहित पद पाठअभि । क्षिपः । सम् । अग्मत । मर्जयन्तीः । इषः । पतिम् । पृष्ठा । गृभ्णत । वाजिनः ॥ ९.१४.७
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 14; मन्त्र » 7
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 4; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 4; मन्त्र » 2
विषय - उसके अधीन प्रबल सेना और वीर पुरुष।
भावार्थ -
(क्षिपः) राष्ट्र में रहने और शत्रुओं को उखाड़ फेकने में समर्थ प्रजाएं और सेनाएं (इषः पतिम्) सेनाओं के पालक, अन्नों के पालक, स्वामी को (मर्जयन्तीः) अभिषेक करती हुईं (अभि सम् अग्मत) उसे प्राप्त होती हैं और (वाजिनः) बली, अश्व-सैन्य और ऐश्वर्यवान् जन उस के (पृष्ठा) पृष्ठ के ऊपर उसके पोषक होकर उसका आश्रय (गृभ्णत) ग्रहण करते हैं।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः-१-३,५,७ गायत्री। ४,८ निचृद् गायत्री। ६ ककुम्मती गायत्री॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥
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