ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 14/ मन्त्र 7
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
अ॒भि क्षिप॒: सम॑ग्मत म॒र्जय॑न्तीरि॒षस्पति॑म् । पृ॒ष्ठा गृ॑भ्णत वा॒जिन॑: ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भि । क्षिपः॑ । सम् । अ॒ग्म॒त॒ । म॒र्जय॑न्तीः । इ॒षः । पति॑म् । पृ॒ष्ठा । गृ॒भ्ण॒त॒ । वा॒जिनः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अभि क्षिप: समग्मत मर्जयन्तीरिषस्पतिम् । पृष्ठा गृभ्णत वाजिन: ॥
स्वर रहित पद पाठअभि । क्षिपः । सम् । अग्मत । मर्जयन्तीः । इषः । पतिम् । पृष्ठा । गृभ्णत । वाजिनः ॥ ९.१४.७
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 14; मन्त्र » 7
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 4; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 4; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(क्षिपः) चित्तवृत्तयः (अभि) सर्वतः (इषस्पतिम्) सर्वैश्वर्यस्वामिनं (मर्जयन्तीः) प्रकाशयन्त्यः (समग्मत) समाधिदशामधिगच्छन्ति तत्र च (वाजिनः) अखिलबलानाम् (पृष्ठा) आधारं (गृभ्णत) गृभ्णन्ति ॥७॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(क्षिपः) चित्तवृत्तियें (अभि) सब ओर से (इषस्पतिम्) जो सब ऐश्वर्यों का पति है, उसको (मर्जयन्तीः) प्रकाशित करती हुयी (समग्मत) समाधि अवस्था को प्राप्त होती हैं और वहाँ (वाजिनः) सब बलों के (पृष्ठा) अधिकरण को (गृभ्णत) ग्रहण करती हैं ॥७॥
भावार्थ
परमात्मा सब पदार्थों का अधिकरण है अर्थात् उसी की सत्ता से सब पदार्थ स्थिर हो रहे हैं। उस बलस्वरूप परमात्मा का साक्षात्कार समाधि अवस्था के विना कदापि नहीं हो सकता ॥७॥
विषय
सोम की धारण शक्तियाँ
पदार्थ
[१] सोमरक्षण से पवित्र हृदय में प्रभु प्रेरणा सुन पड़ती है । इसलिए यहाँ सोम को 'इषस्पति' = प्रेरणा का पति कहा है। (क्षिपः) = वासनाओं व विषयों को अपने से परे फेंकनेवाली दस इन्द्रियाँ (इषस्पतिम्) = प्रभु प्रेरणा के रक्षक इस सोम को (मर्जयन्ती:) = शुद्ध करती हुई (अभि समग्मत) = उस प्रभु की ओर गतिवाली होती हैं। विषयों से इन्द्रियों के अनाक्रान्त होने पर ही सोम का रक्षण होता है। इसके रक्षण पर ही प्रभु प्रेरणा का सुनाई पड़ना व प्रभु का मिलना सम्भव है। [२] इसलिए (वाजिनः) = इस शक्तिशाली सोम के पृष्ठा धारण शक्तियों को गृभ्णत ग्रहण करनेवाले बनो । सोम ही शरीर का धारण करता है, यही मन व बुद्धि का धारण करनेवाला है।
भावार्थ
भावार्थ - वासनाशून्य इन्द्रियाँ सोमरक्षण का साधन बनती हैं। रक्षित सोम प्रभु प्राप्ति का साधन बनता है। यही हमारा धारण करता है।
विषय
उसके अधीन प्रबल सेना और वीर पुरुष।
भावार्थ
(क्षिपः) राष्ट्र में रहने और शत्रुओं को उखाड़ फेकने में समर्थ प्रजाएं और सेनाएं (इषः पतिम्) सेनाओं के पालक, अन्नों के पालक, स्वामी को (मर्जयन्तीः) अभिषेक करती हुईं (अभि सम् अग्मत) उसे प्राप्त होती हैं और (वाजिनः) बली, अश्व-सैन्य और ऐश्वर्यवान् जन उस के (पृष्ठा) पृष्ठ के ऊपर उसके पोषक होकर उसका आश्रय (गृभ्णत) ग्रहण करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः-१-३,५,७ गायत्री। ४,८ निचृद् गायत्री। ६ ककुम्मती गायत्री॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The intelligential faculties of the soul cleansing themselves, together in concentration, move to the lord omnipotent of food, energy and intelligence and reach the fount and foundation of all action and attainment for the soul.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा सर्व पदार्थांचा अधिकरण (प्रमुख) आहे. अर्थात त्याच्या सत्तेने सर्व पदार्थ स्थिर होतात. त्या बलस्वरूप परमात्म्याचा साक्षात्कार समाधी अवस्थेशिवाय होत नाही. ॥७॥
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