ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 14/ मन्त्र 4
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
नि॒रि॒णा॒नो वि धा॑वति॒ जह॒च्छर्या॑णि॒ तान्वा॑ । अत्रा॒ सं जि॑घ्नते यु॒जा ॥
स्वर सहित पद पाठनि॒ऽरि॒णा॒नः । वि । धा॒व॒ति॒ । जह॑त् । शर्या॑णि । तान्वा॑ । अत्र॑ । सम् । जि॒घ्र॒ते॒ । यु॒जा ॥
स्वर रहित मन्त्र
निरिणानो वि धावति जहच्छर्याणि तान्वा । अत्रा सं जिघ्नते युजा ॥
स्वर रहित पद पाठनिऽरिणानः । वि । धावति । जहत् । शर्याणि । तान्वा । अत्र । सम् । जिघ्रते । युजा ॥ ९.१४.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 14; मन्त्र » 4
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 3; मन्त्र » 4
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 3; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
उक्तः परमात्मा (निरिणानः) ज्ञानविषयो भवन् (तान्वा) स्वप्रकाशेन (शर्याणि) स्वप्रकाशरश्मिवर्गं जहत् (विधावति) जिजासुबुद्धौ तिष्ठति (अत्र युजा) अत्र परमात्मनि योगेन (सम् जिघ्नते) उपासकाः स्वाज्ञानं घ्नन्ति ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
उक्त परमात्मा (निरिणानः) ज्ञान का विषय होता हुआ (तान्वा) अपने प्रकाश से (शर्याणि) अपनी प्रकाशरश्मियों को छोड़ता हुआ (विधावति) जिज्ञासु के बुद्धिगत होता है (अत्र युजा) उस परमात्मा में युक्त होकर (सम् जिघ्नते) उपासक लोग अज्ञानों का नाश करते हैं ॥४॥
भावार्थ
ध्यान का विषय हुआ वह परमात्मा जिज्ञासुओं के अन्तःकरणों को निर्मल करता है और जिज्ञासुजन उस की उपासना करते हुए अज्ञान का नाश करके परम गति को प्राप्त होते हैं ॥४॥
विषय
प्रभु के साथ मेल
पदार्थ
[१] गत मन्त्र के अनुसार सुरक्षित हुआ हुआ सोम (नि-रिणान:) = [ To expel, drive out] सब बुराइयों को शरीर से पृथक् करता हुआ (विधावति) = जीवन को बड़ा शुद्ध बना डालता है 'धाव् शुद्धौ'। यह सोम (तान्वा) = शक्तियों के विस्तार के द्वारा (शर्याणि) = [शृ हिंसावाम्] हमारी हिंसा करनेवाले काम-क्रोध आदि मानस शत्रुओं को तथा रोगकृमिरूप शारीर शत्रुओं को (जहत्) = यह त्यागनेवाला होता है। शरीर में रक्षित सोम शक्तियों को बढ़ाता है और आधि-व्याधियों को विनष्ट करता है । [२] इस प्रकार इस शरीर को शुद्ध बनाकर (अत्र) = यहाँ इस शरीर में (युजा) = उस अपने साथी के साथ (संजिघ्रते) = संगत होता है [ संगतो भवति सा० ] प्रभु ही सखा हैं, उनके साथ मेल इस सोम के द्वारा ही होता है।
भावार्थ
भावार्थ- सोम शरीर का शोधन कर देता है, इस शुद्ध शरीर में जीव प्रभु रूप मित्र को प्राप्त करता है।
विषय
राजा का देश को निश्कण्टक करने का कार्य।
भावार्थ
वह (नि-रिणानः) शत्रुओं को नाश करता हुआ (वि धावति) विविध मार्गों से जावे, वह देश को निष्कण्टक कर शोधन करे। और (शर्याणि) शरों से नाश करने योग्य (तान्वा) देहधारियों को (जहत्) नाश करे। (अत्र) इस कार्य में (युजा) सहायक वर्ग से वह (सं जिघ्नते) प्रेम से मिल कर रहे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः-१-३,५,७ गायत्री। ४,८ निचृद् गायत्री। ६ ककुम्मती गायत्री॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Apprehended with discrimination and clear vision, it descends into the devotee’s consciousness, releasing light by its radiations, and, joining the devotee, it destroys his darkness and ignorance.
मराठी (1)
भावार्थ
ध्यानाचा विषय असलेला परमात्मा जिज्ञासूंच्या अंत:करणाला निर्मल करतो व जिज्ञासू लोक त्याची उपासना करत अज्ञानाचा नाश करून परम गतीला प्राप्त होतात. ॥४॥
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