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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 17 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 17/ मन्त्र 2
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - भुरिग्गायत्री स्वरः - षड्जः

    अ॒भि सु॑वा॒नास॒ इन्द॑वो वृ॒ष्टय॑: पृथि॒वीमि॑व । इन्द्रं॒ सोमा॑सो अक्षरन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । सु॒वा॒नासः॑ । इन्द॑वः । वृ॒ष्टयः॑ । पृ॒थि॒वीम्ऽइ॑व । इन्द्र॑म् । सोमा॑सः । अ॒क्ष॒र॒न् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभि सुवानास इन्दवो वृष्टय: पृथिवीमिव । इन्द्रं सोमासो अक्षरन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । सुवानासः । इन्दवः । वृष्टयः । पृथिवीम्ऽइव । इन्द्रम् । सोमासः । अक्षरन् ॥ ९.१७.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 17; मन्त्र » 2
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 7; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    (वृष्टयः पृथिवीम् इव) वृष्टियें जिस प्रकार भूमि को प्राप्त होती हैं, और (इन्द्रम् अभि अक्षरन्) जलों के धारक समुद्र की ओर बह जाती हैं, उसी प्रकार (सुवानासः इन्दवः सोमासः) उत्पन्न होते हुए, शासन करते हुए ये स्नेहार्द्र शासक, बलवान् पुरुष (इन्द्रम् अभि अक्षरन्) ऐश्वर्यवान् वा अन्न-दाता को लक्ष्य करके जाते हैं, उस का ही शासन मानते हैं। (२) इसी प्रकार (सुवानासः सोमाः) उत्पन्न होते हुए समस्त प्राणी उसी प्रभु की शरण जाते हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः ॥ पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, ३-८ गायत्री। २ भुरिग्गायत्री ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥

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