ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 28/ मन्त्र 1
ए॒ष वा॒जी हि॒तो नृभि॑र्विश्व॒विन्मन॑स॒स्पति॑: । अव्यो॒ वारं॒ वि धा॑वति ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षः । वा॒जी । हि॒तः । नृऽभिः॑ । वि॒श्व॒ऽवित् । मन॑सः । पतिः॑ । अव्यः॑ । वार॑म् । वि । धा॒व॒ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एष वाजी हितो नृभिर्विश्वविन्मनसस्पति: । अव्यो वारं वि धावति ॥
स्वर रहित पद पाठएषः । वाजी । हितः । नृऽभिः । विश्वऽवित् । मनसः । पतिः । अव्यः । वारम् । वि । धावति ॥ ९.२८.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 28; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 18; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 18; मन्त्र » 1
विषय - पवमान सोम। मुख्य रक्षक पद के योग्य पुरुष का वर्णन।
भावार्थ -
(एषः) वह (वाजी) बलवान् (विश्व-वित्) सर्वज्ञ (मनसः पतिः) सब ज्ञानों और सब के चित्तों का पालक (नृभिः) नायकों द्वारा (हितः) स्थापित किया जाय। वह (अव्यः) रक्षक सेना के (वारं) वरण योग्य मुख्य पद को (वि धावति) विशेष रूप से प्राप्त करता है।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - प्रियमेध ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:–१, ४, ५ गायत्री। २, ३, ६ विराड् गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इस भाष्य को एडिट करें