ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 31/ मन्त्र 5
तुभ्यं॒ गावो॑ घृ॒तं पयो॒ बभ्रो॑ दुदु॒ह्रे अक्षि॑तम् । वर्षि॑ष्ठे॒ अधि॒ सान॑वि ॥
स्वर सहित पद पाठतुभ्य॑म् । गावः॑ । घृ॒तम् । पयः॑ । बभ्रो॒ इति॑ । दु॒दु॒ह्रे । अक्षि॑तम् । वर्षि॑ष्ठे । अधि॑ । सान॑वि ॥
स्वर रहित मन्त्र
तुभ्यं गावो घृतं पयो बभ्रो दुदुह्रे अक्षितम् । वर्षिष्ठे अधि सानवि ॥
स्वर रहित पद पाठतुभ्यम् । गावः । घृतम् । पयः । बभ्रो इति । दुदुह्रे । अक्षितम् । वर्षिष्ठे । अधि । सानवि ॥ ९.३१.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 31; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 21; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 21; मन्त्र » 5
विषय - उत्तम विद्वान् का शासन।
भावार्थ -
हे (बभ्रो) प्रजा को पालन पोषण करने हारे ! (गावः) गौएं (तुभ्यं) तेरे लिये वा (तुभ्यं गावः) तेरी गौएं (अक्षितं) न नाश होने वाला (घृतं पयः दुदुह्रे) घी और दूध प्रदान करें और (तुभ्यं गावः) तेरी भूमियां (वर्षिष्ठे सानवि अधि) खूब वर्षण से युक्त उच्च स्थल पर (अक्षितम्) अन्न (दुदुह्रे) खूब उत्पन्न करें। अन्य पक्षों में—वाणियें, ज्ञान अर्थात् प्रकाश से युक्त ज्ञान और इन्द्रियें सत्य अक्षय ज्ञान, सर्वश्रेष्ठ स्थान मूर्धा में उत्पन्न करे।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - गोतम ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:—१ ककुम्मती गायत्री। २ यवमध्या गायत्री। ३, ५ गायत्री। ४, ६ निचृद् गायत्री॥
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