ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 46/ मन्त्र 2
परि॑ष्कृतास॒ इन्द॑वो॒ योषे॑व॒ पित्र्या॑वती । वा॒युं सोमा॑ असृक्षत ॥
स्वर सहित पद पाठपरि॑ऽकृतासः । इन्द॑वः । योषा॑ऽइव । पित्र्य॑ऽवती । वा॒युम् । सोमाः॑ । अ॒सृ॒क्ष॒त॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
परिष्कृतास इन्दवो योषेव पित्र्यावती । वायुं सोमा असृक्षत ॥
स्वर रहित पद पाठपरिऽकृतासः । इन्दवः । योषाऽइव । पित्र्यऽवती । वायुम् । सोमाः । असृक्षत ॥ ९.४६.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 46; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
विषय - वर के प्रति ब्रह्मचारिणी कन्या के तुल्य, ब्रह्मचारियों का गुरु के प्रति उत्सुकता पूर्वक गमन।
भावार्थ -
(पित्र्यावती योषा इव) पालक पिता वाली कन्या जिस प्रकार (सोमा) ब्रह्मचारिणी वीर्यवता होकर (वायुम्) बलवान् वर को (परिष्कृता असृक्षत) अलंकृत होकर जाती है उसी प्रकार (इन्दवः) निष्णात शुद्ध (सोमाः) ब्रह्मचारी गण (परिष्कृतासः) अलंकृत, नव वस्त्र, क्षौर आदि से पवित्र होकर (वायुम् असृक्षत) ज्ञानी गुरु वा बलवान् सेनापति को प्राप्त होते हैं। (२) इसी प्रकार ज्ञानादिसम्पन्न जीव गण (वायुम्) जीवनों के जीवन, उस प्रभु को प्राप्त होते हैं।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अयास्य ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता। छन्द:- १ ककुम्मती गायत्री। २, ४, ६ निचृद् गायत्री। ३, ५ गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
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