ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 5/ मन्त्र 1
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - आप्रियः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
समि॑द्धो वि॒श्वत॒स्पति॒: पव॑मानो॒ वि रा॑जति । प्री॒णन्वृषा॒ कनि॑क्रदत् ॥
स्वर सहित पद पाठसम्ऽइ॑द्धः । वि॒श्वतः॑ । पतिः॑ । पव॑मानः । वि । रा॒ज॒ति॒ । प्री॒णन् । वृषा॑ । कनि॑क्रदत् ॥
स्वर रहित मन्त्र
समिद्धो विश्वतस्पति: पवमानो वि राजति । प्रीणन्वृषा कनिक्रदत् ॥
स्वर रहित पद पाठसम्ऽइद्धः । विश्वतः । पतिः । पवमानः । वि । राजति । प्रीणन् । वृषा । कनिक्रदत् ॥ ९.५.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
विषय - पवमानसोम। प्रजा प्रिय उत्तम राजा के कर्त्तव्य।
भावार्थ -
(समिद्धः) खूब तेजस्वी, (विश्वतः पतिः) सब प्रकार से प्रजाओं का पालन करने वाला, (पवमानः) सबको पवित्र करता हुआ, वा अभिषेक द्वारा अपने को पवित्र करता हुआ (प्रीणन्) सबको प्रसन्न करता है और वह (वृषा) बलवान्, उत्तम प्रबन्धक, प्रजा पर सुखों, ऐश्वयों की वर्षा करता हुआ, (कनिक्रदत्) हर्ष ध्वनि, गर्जना और घोषणाएं देता हुआ, (वि राजति) विशेष राजावत् शोभा प्राप्त करता है। (२) इसी प्रकार तेजस्वी, (सोमः) ब्रह्मचारी, बलिष्ठ, विद्वान् स्नातक होकर स्त्री का सर्वस्व पति हो। (३) वैसा ही परमेश्वर विश्वतः पालक है।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - असितः काश्यपो देवता वा ऋषिः। आप्रियो देवता ॥ छन्द:-- १, २, ४-६ गायत्री। ३, ७ निचृद गायत्री। ८ निचृदनुष्टुप्। ९, १० अनुष्टुप्। ११ विराडनुष्टुप्॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥
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