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ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 60/ मन्त्र 3
अति॒ वारा॒न्पव॑मानो असिष्यदत्क॒लशाँ॑ अ॒भि धा॑वति । इन्द्र॑स्य॒ हार्द्या॑वि॒शन् ॥
स्वर सहित पद पाठअति॑ । वारा॑न् । पव॑मानः । अ॒सि॒स्य॒द॒त् । क॒लशा॑न् । अ॒भि । धा॒व॒ति॒ । इन्द्र॑स्य । हार्दि॑ । आ॒ऽवि॒शन् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अति वारान्पवमानो असिष्यदत्कलशाँ अभि धावति । इन्द्रस्य हार्द्याविशन् ॥
स्वर रहित पद पाठअति । वारान् । पवमानः । असिस्यदत् । कलशान् । अभि । धावति । इन्द्रस्य । हार्दि । आऽविशन् ॥ ९.६०.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 60; मन्त्र » 3
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 17; मन्त्र » 3
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 17; मन्त्र » 3
विषय - missing
भावार्थ -
(वारान्) आवरण रूप बाधक कारणों को पार करके (पवमानः) राष्ट्र को पवित्र, स्वच्छ करता हुआ स्वयं भी (कलशान् अभि धावति) अभिषेच्य जल से पूर्ण कलशों को प्राप्त करता है। वह (इन्द्रस्य हार्दि) ऐश्वर्ययुक्त राष्ट्र के हृदय-भाग में (आविशन्) प्रवेश करता है। अध्यात्म में सोम जीव पवित्र होता हुआ कोशों में प्रवेश कर आनन्दमय परमेश्वर में प्रवेश करता है।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अवत्सार ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, २, ४ गायत्री। ३ निचृदुष्णिक्॥ चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
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