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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 160
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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सु꣣रूपकृत्नु꣢मू꣣त꣡ये꣢ सु꣣दु꣡घा꣢मिव गो꣣दु꣡हे꣢ । जु꣣हूम꣢सि꣣ द्य꣡वि꣢द्यवि ॥१६०॥

स्वर सहित पद पाठ

सु꣣रूपकृत्नुम् । सु꣣रूप । कृत्नु꣢म् । ऊ꣣त꣡ये꣢ । सु꣣दु꣡घा꣢म् । सु꣣ । दु꣡घा꣢꣯म् । इ꣣व गोदु꣡हे꣢ । गो꣣ । दु꣡हे꣢꣯ । जु꣣हूम꣡सि꣣ । द्य꣡वि꣢꣯द्यवि । द्य꣡वि꣢꣯ । द्य꣣वि ॥१६०॥


स्वर रहित मन्त्र

सुरूपकृत्नुमूतये सुदुघामिव गोदुहे । जुहूमसि द्यविद्यवि ॥१६०॥


स्वर रहित पद पाठ

सुरूपकृत्नुम् । सुरूप । कृत्नुम् । ऊतये । सुदुघाम् । सु । दुघाम् । इव गोदुहे । गो । दुहे । जुहूमसि । द्यविद्यवि । द्यवि । द्यवि ॥१६०॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 160
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 2; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 5;
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भावार्थ -

भा० = ( गोदुहे ) = दूध के दोहने के लिये जिस प्रकार ( सुदुघाम् ) = उत्तम रूप से दूध देने वाली गाय को प्राप्त किया जाता है उसी प्रकार ( सुरूपकृत्नुम् ) = उत्तम ज्ञान और कर्म सम्पादन करने वाले इन्द को ( ऊतये ) = अपने को पापाचरण से बचाने के लिये ( द्यवि-द्यवि १ ) = प्रतिदिन ( जुहूमसि ) = हम स्मरण करते और उसकी स्तुति करते हैं।

ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

ऋषिः - मधुच्छन्दा:।

देवता - इन्द्रः। 

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