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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 21

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 21/ मन्त्र 1
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - छन्दांसि छन्दः - एकावसाना द्विपदा साम्नी बृहती सूक्तम् - छन्दासि सूक्त

    गा॑य॒त्र्युष्णिग॑नु॒ष्टुब्बृ॑ह॒ती प॒ङ्क्तिस्त्रि॒ष्टुब्जग॑त्यै ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गा॒य॒त्री। उ॒ष्णिक्। अ॒नु॒ऽस्तुप्। बृ॒ह॒ती। प॒ङ्क्ति। त्रि॒ऽस्तुप्। जग॑त्यै ॥२१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहती पङ्क्तिस्त्रिष्टुब्जगत्यै ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गायत्री। उष्णिक्। अनुऽस्तुप्। बृहती। पङ्क्ति। त्रिऽस्तुप्। जगत्यै ॥२१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 21; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    (गायत्री,) गायत्री छन्द, (उष्णिग्) उष्णिग् छन्द, (अनुष्टुप्) अनुष्टुप् छन्द, (बृहती) बृहती छन्द (पंक्तिः) पंक्ति छन्द (त्रिष्टुप जगत्यौ) त्रिष्टुप् छन्द और जगती छन्द। इन समस्त छन्दों का ज्ञान विद्वानों को करना चाहिये। ये क्रम से २४, २८, ३२, ३६, ४०, ४४, ४८ अक्षरों की संख्या से हैं। इनके अनुसार ही ब्रह्म अर्थात् वेद के स्वाध्याय के लिये मनुष्य अपने जीवन में २४, २८, ३२, ३६, ४०, ४४ और ४८ वर्षो का ब्रह्मचर्य धारण करें। इसके अतिरिक्त मानव शक्ति की वृद्धि के लिये गायत्री=पृथिवी, ब्राह्मण, प्राण, शिर, अग्नि, प्राची, वसुओं की पालक शक्ति। उष्णिक्=आयु, चक्षु, पशु, यजमान, नासिका या ग्रीवा। अनुष्टुप्=मित्र की पालक शक्ति, वाणी, ज्येष्ठता, पादभाग, गोडे, प्रजापति राजन्य, अश्व, आपः, सत्यानृत। बृहती=पशु, स्वाराज्य, श्री, अन्तरिक्ष, वाणी, मन, प्राण, व्यान, आत्मा, द्यौः। पंक्तिः=विष्णु की पालक शक्ति, पक्ष, अन्न, अग्नि, ४४, पुरुष, पशु, यज्ञ, श्रोत्र। त्रिष्टुप्= वज्र, इन्द्र, वीर्य, ओजः, इन्द्रिय, उरस्, राजन्य, क्षेत्र, वायु, अन्तरिक्ष, पशु, अपान,आत्मा। जगती=पृथवी, सिनीवाली, पशु, ओषधि, अश्व, वैश्य, आदित्यों की पालक शक्ति, श्रोणिभाग, वर्षाऋतु, सत्य, अनूकभाग, अवङि् प्राण, मध्यभाग, श्रोत्र, यश॥ अर्थात् आध्यत्म में—सप्तप्राण, आधियाज्ञिक में सप्त सोम याग, देह में सप्तधातु, राज्य में सप्त प्रकृति और त्रिभुवन में ५ सूक्ष्म भूत और महत् और अहंकार तत्व इत्यादि सात छन्दों की योजना यथोचित रीति से जाननी चाहिये।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। छन्दो देवता। एकावसाना द्विपदा बृहती। एकर्चं सूक्तम्॥

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