अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 39/ मन्त्र 2
सूक्त - भृग्वङ्गिराः
देवता - कुष्ठः
छन्दः - त्र्यवसाना पथ्यापङ्क्तिः
सूक्तम् - कुष्ठनाशन सूक्त
त्रीणि॑ ते कुष्ठ॒ नामा॑नि नद्यमा॒रो न॒द्यारि॑षः। नद्या॒यं पुरु॑सो रिषत्। यस्मै॑ परि॒ब्रवी॑मि त्वा सा॒यंप्रा॑त॒रथो॒ दिवा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठत्रीणि॑। ते॒। कु॒ष्ठ॒। नामा॑नि। न॒द्य॒ऽमा॒रः। न॒द्यऽरि॑षः। नद्य॑। अ॒यम्। पुरु॑षः। रि॒ष॒त्। यस्मै॑। प॒रि॒ऽब्रवी॑मि। त्वा॒। सा॒यम्ऽप्रा॑तः। अथो॒ इति॑। दिवा॑ ॥३९.२॥
स्वर रहित मन्त्र
त्रीणि ते कुष्ठ नामानि नद्यमारो नद्यारिषः। नद्यायं पुरुसो रिषत्। यस्मै परिब्रवीमि त्वा सायंप्रातरथो दिवा ॥
स्वर रहित पद पाठत्रीणि। ते। कुष्ठ। नामानि। नद्यऽमारः। नद्यऽरिषः। नद्य। अयम्। पुरुषः। रिषत्। यस्मै। परिऽब्रवीमि। त्वा। सायम्ऽप्रातः। अथो इति। दिवा ॥३९.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 39; मन्त्र » 2
विषय - कुष्ठ नामक ओषधि।
भावार्थ -
हे (कुष्ठ) कुष्ठ ! (ते) तेरे (त्रीणि) तीन प्रकार के (नामानि) रोगों को दमन करने के सामर्थ्य हैं। एक तो (नघमारः) पुरुष को कभी मरने नहीं देता, दूसरा (नघ-अरिषः) कभी कोई अरिष्ट या रोग नहीं होने देता। अथवा कुष्ठ के तीन नाम हैं कुष्ठ, नघमार और नघारिष, इसी कारण हे कुष्ठ ! (यस्मै) जिस पुरुष को भी (त्वा) तेरा (परि ब्रवीमि) मैं उपदेश करूं। (अयं) वह (पुरुष) पुरुष चाहे (सायं प्रातः अथो दिवा) सायंकाल, प्रातःकाल, मध्याह्न हो, कभी भी, (नघ रिषत्) रोग पीड़ा आदि कष्ट को प्राप्त नहीं होता।
‘नद्यमारो,नद्यारिषः,नद्यायं’ यह पाठ प्रायः सर्वत्र छपी पुस्तकों में है। परन्तु ‘नघारिषाम्’ आदि प्रयोग (अथर्व० ८। २। ६॥ ८। ७। ६॥) देखने से शुद्ध पाठ ‘नघमारो नघारिषः नघायं’ यही है। शंकर, पाण्डुरंग और ह्विटनी को इस पाठ में संदेह है। परन्तु बनारस संस्कृत कालिज के पण्डित ग्रीफिथ को इस पाठ में कोई संदेह नहीं। उसको प्राप्त हस्तलिपि में ‘नद्यमारो,नद्यारिषः,नद्यायं’ यही पाठ रहा प्रतीत होता है। यही पाठ पैप्पलाद का भी है।
टिप्पणी -
नद्यमारो नद्यारिषः नद्यायः इति बहुत्र पाठः। वद्ययोरविवेकः। ‘नघारिषं’ इति पूर्वत्रापि ७। २। ६॥ ७। ७॥ ६॥ प्रयोगदर्शनात् घः सघुः। ‘अस्मै’ ‘दिवः’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भृंग्वङ्गिरा ऋषिः। मन्त्रोक्तः कुष्ठो देवता। २, ३ पथ्यापंक्तिः। ४ षट्पदा जगती (२-४ त्र्यवसाना) ५ सप्तपदा शक्वरी। ६८ अष्टयः (५-८ चतुरवसानाः)। शेषा अनुष्टुभः। दशर्चं सूक्तम्।
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