अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 39/ मन्त्र 9
सूक्त - भृग्वङ्गिराः
देवता - कुष्ठः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - कुष्ठनाशन सूक्त
यं त्वा॒ वेद॒ पूर्व॒ इक्ष्वा॑को॒ यं वा॑ त्वा कुष्ठ का॒म्यः। यं वा॒ वसो॒ यमात्स्य॒स्तेना॑सि वि॒श्वभे॑षजः ॥
स्वर सहित पद पाठयम्। त्वा॒। वेद॑। पूर्वः॑। इक्ष्वा॑कः। यम्। वा॒। त्वा॒। कु॒ष्ठः॒। का॒म्यः᳡। यम्। वा॒। वसः॑। यम्। आत्स्यः॑। तेन॑। अ॒सि॒। वि॒श्वऽभे॑षजः ॥३९.९॥
स्वर रहित मन्त्र
यं त्वा वेद पूर्व इक्ष्वाको यं वा त्वा कुष्ठ काम्यः। यं वा वसो यमात्स्यस्तेनासि विश्वभेषजः ॥
स्वर रहित पद पाठयम्। त्वा। वेद। पूर्वः। इक्ष्वाकः। यम्। वा। त्वा। कुष्ठः। काम्यः। यम्। वा। वसः। यम्। आत्स्यः। तेन। असि। विश्वऽभेषजः ॥३९.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 39; मन्त्र » 9
विषय - कुष्ठ नामक ओषधि।
भावार्थ -
हे (कुष्ठ) कुष्ठ ! (यं) जिस (त्वा) तुझको (पूर्वः) पूर्व का या पूर्ण (इष्वाकः) ‘इष्वाक’ नामक पक्षी बाण के समान वेग से जाने वाला (वेद) प्राप्त करता है और (वा) या (यं त्वा) जिस तुझको (काम्यः) कामना या आवश्यकता वाला पुरुष या ‘काम्य’ नाम पक्षी (वेद) प्राप्त करता है। (वा) और या (यं) जिस तुझको (वायसः) वायस नाम पक्षी और (यं मात्स्यः) जिसको ‘मात्स्य’ नामक पक्षी (वेद) जानता है। (तेन) उससे तू (विश्वभेषजः असि) सब रोगों को दूर करने वाला औषध है।
ग्रीफिथ के मत से—पूर्व, इक्ष्वाकु, काम्य, वायस और मात्स्य ये राजाओं के नाम हैं। शंकर या पाण्डुरंग सम्मत पाठ इस प्रकार है—‘यं त्वा वेद पूर्व इक्ष्वाको यं वा त्वा कुष्ठ काम्यः। यं वावसो यं मात्स्यस्तनासि विश्वभेषजः’।
सायण के मत से—इक्ष्वाकु नाम राजा, काम्य, कामनायुक्त (यमास्य वसः) यममुख ‘वस’ नामक देव। हमारे विचार में यह पाठ विकृत है। पूर्व इक्ष्वाकु, काम्य, वायस और मात्स्य ये पक्षियों के नाम प्रतीत होते हैं। वाचस्पत्य और शब्द कल्पद्रुम महाकोशों के अनुसार मात्स्यरंग ‘मच्छरंग’ नाम जल पक्षी है। काम्य या कामान्ध नाम श्येन का है। कामी नाम चकवा, कबूतर, चटक और सारस का वाचक है। वायस काक या कौन है। इक्ष्वाकु—इक्ष्वाकु भी किसी तीव्रगति पक्षी का नाम प्रतीत होता है।
टिप्पणी -
(प्र०) ‘इक्षाकुयं’ इति सायणाभिमतः। ‘इष्वाक’ इत्येव प्रायः। ‘इक्ष्वाकः। यं’ इति प्रायः पदपाठः। ‘कुष्ठकाम्यः’ इति ह्विटनिकामितः। (द्वि०) ‘यं वायसो यमात्स्यस्ते’ इति प्रायः। ‘यं वायसो यमात्स्यस्ते’ इति ग्रिफिथकामितो ह्विटनिकामितश्च (प्र-तृ०) यं त्वा वेद पूर्व इक्ष्वाको यं वा त्वा कुष्टिकाश्च अहिश्यायसो अनुसारिच्छ स्तेना, इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भृंग्वङ्गिरा ऋषिः। मन्त्रोक्तः कुष्ठो देवता। २, ३ पथ्यापंक्तिः। ४ षट्पदा जगती (२-४ त्र्यवसाना) ५ सप्तपदा शक्वरी। ६८ अष्टयः (५-८ चतुरवसानाः)। शेषा अनुष्टुभः। दशर्चं सूक्तम्।
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