अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 54/ मन्त्र 5
सूक्त - भृगुः
देवता - कालः
छन्दः - त्र्यवसाना षट्पदा विराडष्टिः
सूक्तम् - काल सूक्त
का॒लेऽयमङ्गि॑रा दे॒वोऽथ॑र्वा॒ चाधि॑ तिष्ठतः। इ॒मं च॑ लो॒कं प॑र॒मं च॑ लो॒कं पुण्यां॑श्च लो॒कान्विधृ॑तीश्च॒ पुण्याः॑। सर्वां॑ल्लो॒कान॑भि॒जित्य॒ ब्रह्म॑णा का॒लः स ई॑यते पर॒मो नु दे॒वः ॥
स्वर सहित पद पाठका॒ले। अ॒यम्। अङ्गि॑राः। दे॒वः। अथ॑र्वा। च॒। अधि॑। ति॒ष्ठ॒तः॒। इ॒मम्। च॒। लो॒कम्। प॒र॒मम्। च॒। लो॒कम्। पुण्या॑न्। च॒। लो॒कान्। विऽधृ॑तीः। च॒। पुण्याः॑। सर्वा॑न्। लो॒कान्। अ॒भि॒ऽजित्य॑। ब्रह्म॑णा। का॒लः। सः। ई॒य॒ते॒। प॒र॒मः। नु। दे॒वः ॥५४.५॥
स्वर रहित मन्त्र
कालेऽयमङ्गिरा देवोऽथर्वा चाधि तिष्ठतः। इमं च लोकं परमं च लोकं पुण्यांश्च लोकान्विधृतीश्च पुण्याः। सर्वांल्लोकानभिजित्य ब्रह्मणा कालः स ईयते परमो नु देवः ॥
स्वर रहित पद पाठकाले। अयम्। अङ्गिराः। देवः। अथर्वा। च। अधि। तिष्ठतः। इमम्। च। लोकम्। परमम्। च। लोकम्। पुण्यान्। च। लोकान्। विऽधृतीः। च। पुण्याः। सर्वान्। लोकान्। अभिऽजित्य। ब्रह्मणा। कालः। सः। ईयते। परमः। नु। देवः ॥५४.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 54; मन्त्र » 5
विषय - कालरूप परमशक्ति।
भावार्थ -
(काले) उस कालरूप परमेश्वर पर (अयम्) यह (अंगिराः) प्रकाशमान (देवः) देव, सूर्य और (अथर्वा च) अथर्वा वायु (अधितिष्ठतः) आश्रित हैं। (कालः) वह सर्वज्ञ, सबका प्रेरक, परमेश्वर (ब्रह्मणा) अपने महान् सामर्थ्य से (इमं लोकं च) इस लोक को (परमं च लोकं च) और उस दूर स्थित उच्च लोक को और (पुण्यान् लोकान् च) समस्त पुण्य लोकों को, समस्त (पुण्याः विधृतीः) पुण्य मर्यादाओं को और (सर्वान् लोकान् अभिजित्य) समस्त लोकों का विजय करके वह (परमः) परम सर्वोच्च (देवः नु) देव (सः) वही (ईयते) जाना जाता है।
टिप्पणी -
(च०) ‘विधृतीश्च’ इति क्वचित्।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भृगुर्ऋषिः। कालो देवता। २ त्रिपदा गायत्री। ५ त्र्यवसाना षट्पदा विराड् अष्टिः। शेषा अनुष्टुभः। पञ्चर्चं सूक्तम्।
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