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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 61

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 61/ मन्त्र 1
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - ब्रह्मणस्पतिः छन्दः - विराट्पथ्याबृहती सूक्तम् - पूर्ण आयु सूक्त

    त॒नूस्त॒न्वा मे सहे द॒तः सर्व॒मायु॑रशीय। स्यो॒नं मे॑ सीद पु॒रुः पृ॑णस्व॒ पव॑मानः स्व॒र्गे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त॒नूः। त॒न्वा᳡। मे॒। स॒हे॒। द॒तः। सर्व॑म्। आयुः॑। अ॒शी॒य॒। स्यो॒नम्। मे॒। सी॒द॒। पु॒रुः। पृ॒ण॒स्व॒। पव॑मानः। स्वः॒ऽगे ॥६१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तनूस्तन्वा मे सहे दतः सर्वमायुरशीय। स्योनं मे सीद पुरुः पृणस्व पवमानः स्वर्गे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तनूः। तन्वा। मे। सहे। दतः। सर्वम्। आयुः। अशीय। स्योनम्। मे। सीद। पुरुः। पृणस्व। पवमानः। स्वःऽगे ॥६१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 61; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    हे परमेश्वर ! (तनूः) शरीर (मे) मेरे (तन्वा) शरीर व्यापी बल के (सह इत्) साथ ही रहे। (अतः) इस शरीर से ही मैं (सर्वम् आयुः अशीय) सम्पूर्ण आयु का भोग करूं। हे ईश्वर ! तू (मे) मेरे शरीर को (स्योनम्) सुखपूर्वक (सीद) रख। (पुरः) हे परमेश्वर सबको पूर्ण करने वाले तू (पवमानः) पवित्र करता हुआ (स्वर्गे) स्वर्ग, सुखमय लोक में मुझे (पृणस्व) पूर्ण कर।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। ब्रह्मणस्पतिर्देवता। विराट् पथ्या वृहती, एकर्चं सूक्तम्।

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